
"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा ,दुनिया में.
भीख मांग कर करो गुज़ारा दुनिया में
अगर तुम्हारा नहीं सहारा दुनिया में
पेट तो मांगेगा ही उसकी गलती क्या
इस दुनिया में सदा किसी की चलती क्या
शर्म-ओ-हया से करो किनारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................
किस्मत ऐसा समय, दिखाती जीवन में
कभी महल में वास, कभी होता वन में
कभी बादशाह,कभी बेचारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................
दूध निकलता नहीं , गाय के, जब थन से
त्यागा करता ग्वाला , उसको तन मन से
कूड़ा घर फिर बने, सहारा दुनिया में
भीख मांग कर करो.............................
बोए थे जो फूल समझकर, कांटे थे
सहन किये जो प्यार समझकर, चाँटे थे
"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा दुनिया में
भीख मांग कर करो...............................
संयोग देखिये ०६-०६-२००९ को जयपुर के एक प्रमुख समाचार पत्र के मुख प्रष्ठ पर संलग्न सन्देश प्रकाशित हुआ मैं उस सन्देश की कट्टिंग ले आया परन्तु समाचार पत्र का नाम लिखना भूल गया.( जयपुर के किन्ही पाठक को यदि उपरोक्त समाचार पत्र का नाम पता हो तो बताएं, मैं इसमें नाम स्पष्ट कर दूंगा) मैंने उसकी प्रति यहाँ दिखने की कोशिश की है.
मेरा इ मेल. yogesgverma56@gmail.com
