हमें बेशक भुला दें वो भुलायेंगे न उनको हम
गिला उनसे करें क्यूँ हम, यूँही आहें भरें क्यूँ हम
मुहोब्बत गर नहीं उनको तो फिर उल्फत करें क्यूँ हम
हुई नाकाम सब कोशिश , दिलों में भी नहीं रंजिश
नहीं मरता कोई हम पर, किसी पर फिर मरें क्यूँ हम
उन्हें चाहत जो मिलने की अगर होती तो मिल जाते
हमें दीदार हो उनका , कोई ख्वाहिश करें क्यूँ हम
जुदाई की उन्हें परवाह नहीं न गम बिछुड़ने का
तो फिर उनकी जुदाई में हम ही आँखें करें क्यूँ नम
अभी तक आस थी थोड़ी मगर वो आस भी तोडी
स्वप्न का खून कर डाला सितम आँखें हुईं बेदम
अगर वो सुन रहे हैं तो उन्हें कुछ कान में कह दूँ
हमें बेशक भुला दें वो भुलायेंगे न उनको हम
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4 टिप्पणियां:
"नहीं मरता कोई हम पर, किसी पर फिर मरें क्यूँ हम"
जज्बात बिना किसी प्रतिदान की भावना के साथ बना करते हैं. इसे सम्हाले रहें .
धन्यवाद . हिमांशु
हुई नाकाम सब कोशिश , दिलों में भी नहीं रंजिश
नहीं मरता कोई हम पर, किसी पर फिर मरें क्यूँ हम
बहुत खुद्दार शेर है...बेहतरीन रचना...वाह.
नीरज
भई क्या केने क्या केने।
सरजी आप तो प्यार का एक्सचेंज आफर चलाण लाग रे हो। कोई मरता नहीं हम पर, किसी पर फिर मरे क्यूं हम।
येसे एक्सचेंज आफर चलने लगे, तो फिर तो हो लिया प्यार। वैसे जमाये रहिये। ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है
कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें
ब्लाग पेज की डिजाईन को थीक करें
कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.ucohindi.co.nr
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