मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर श्री सतपाल ख्याल और द्विज जी द्वारा आयोजित मुशायरे में एक छोटा सा योगदान इस खाकसार का भी कुबूल किया गया, मुशायरा काफी सफल रहा , जिसमें २५ से अधिक शायरों ने भाग लिया , लाजवाब रचनाएँ पढने को मिलीं। मैं आयोजकों को धन्यवाद देता हूँ और मेरी जिस अदना सी रचना को सम्मान दिया गया आपके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ।
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़माना आ गया ऐसा , करो अब प्यार चुटकी में
हुई जब बात फ़िल्मों की, दिखाने की तो बेगम-सा
हुई तैयार चुटकी में, किया सिंगार चुटकी में
जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में
है उनकी आँख का जलवा , या साँसों का है ये जादू
कि चंगे हो गए देखो सभी बीमार चुटकी में
ग़ज़ल कहते न थे कल तक न कोई नज़्म लिखते थे
बनाया ब्लॉग चुटकी में, बने फ़नकार चुटकी में
असर है टिप्पणी का हम वगरना थे कहाँ काबिल
कलम ली हाथ चुटकी में , ग़ज़ल तैयार चुटकी में
सतपाल जी का आभारी हूँ जिन्होंने इसे सँवारने में योगदान किया, और मुझे ये मानने में भी कोई झिझक नहीं है, की ग़ज़ल के नियमों आदि की जानकारी मुझे न के बराबर है.
15 टिप्पणियां:
जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में
कही घरेलू अनुभव पे रचना तो नहीं . हा हा बहुत सुन्दर रचना.
bahut hi sundar laga lag sir ji . phle bhi padha hai maine .
स्वपन जी
dubaara padhvaane का शुक्रिया..........सुन्दर है gazal
बहुत सुन्दर और बोलती हुई रचना है।
बधाई।
बिना छंद जाने ही गज़ब ढा रहे हैं
जब छंद जान जाएंगे तो
अल्ला जाने क्य होगा ?
कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेहश्यामसखा‘श्याम’
योगेश जी
बहुत-बहुत बधाई.
जारी रखें.
ग़ज़ल कहना.
www.dwijendradwij.blogspot.com
ये तो गजब चुटकी है योगेश जी
हुजूर अब खुद द्विज आ कर तारीफ़ कर रहे हैं तो हमारी क्या बिसात कि कुछ कहें...
बहुत खूब
आज कल लेखनी शबाब पर पर है आख़िरी शे'र यही बयाँ करता है!
वाह !! बहुत बढिया लिखा आपने ... कभी इनकार चुटकी में ... कभी इकरार चुटकी में।
WAH
CHUTAKI
WALE BAJARAGBALI KEE KAHAANEE YAD HAI N
ग़ज़ल कहते ने थे कल तक, न कोई नज़्म लिखते थे ,
बनाया ब्लॉग चुटकी में, बने फनकार चुटकी में
वाह हुज़ूर !
इतने दिलचस्प शेर कह कर आप ने सब का
दिल जीत लिया है......
आपकी ग़ज़ल श्री सतपाल जी की महफिल की शोभा बनी, उसके लिए बधाई स्वीकार करें .
---मुफलिस---
व्यंग करने वाले व्यंग करते रहें पर हजूर आपने तो गज़ब ढहा दिया...
ग़ज़ल कहते थे न कल तक कोई नज़्म लिखते थे
बनाया ब्लॉग चुटकी में बने फनकार चुटकी में
वाह...वाह....बहुत खूब ...!!
बहुत शानदार रचना लिखी है । चुटकी में ही सारी बाते कह डाली है । शुक्रिया
हमने तो देखी है वो खुश्बू उन निगाहों kee'
जो कभी झूम के बरसी तो बरसती ही गयी।
श्याम ,हमने तो बहुत चाहा कि रूक कर बरसे ,
वो थी बदली जो चली उडके तो उड्ती ही गयी ।
-- swapn jee kyaa sundar ikraar va inkaar hai.
dr shyamgupta
एक टिप्पणी भेजें