उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कौन हो तुम ?

एक जिज्ञासा ह्रदय में
आज उठ आई कहाँ से
कौन हो तुम?

मैं खोजा किया तुमको
स्वप्न में
कल्पना में
गीत में
प्रीत में
आह में
आल्हाद में
किंतु
भटका फिर रहा हूँ मौन
प्रश्न का उत्तर
नहीं मैं पा सका हूँ
कौन हो तुम ?

यह तो निश्चित है की तुम हो
पर कहाँ हो?

मेरा स्वर टकरा कर
मुझसे अचानक
आ गया मेरे ही पास
जब पुकारा मैंने तुम्हें
तब लगा जैसे हो तुम मेरे ही पास
वह स्वप्न था
सत्य की परिधि में बंधा सा
स्वप्न खंडित हो चुका था
इससे पहले कि,
मैं, यह पूछता
तुमसे

अचानक!

कौन हो तुम?

17 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कौन हूँ मै खुद को पहिचानो वाह सुन्दर अभिव्यक्ति.

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sundar ....YOGESH JI.......bahut hi sundar prashna hai

mehek ने कहा…

swapn aur haqiqat mein bas ek choti si rekha hi rahi,sunder rachana badhai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया गद्य-गीत है।
बधाई।

M VERMA ने कहा…

भाव सुन्दर
सार्थक प्रश्न

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SACH MAIN APNE AAP KO DHOONDHNA MUSHKIL HOTA HAI JABKI INSAAN KHUD APNE ADAR HI HOTA HAI.....LAJAWAAB MUKT CHAND KI RACHNA...

Vinay ने कहा…

आज आपकी और मेरी रचना में प्रश्न हैं... बहुत अच्छी रचना!

आलोक पुराणिक ने कहा…

बहुत महत्वपूर्ण सवाल है जी। हम भी इसका जवाब तलाशेंगे।

ज्योति सिंह ने कहा…

wah laazwaab hai .is sawal se sabke wajud jude hai .umda .

vandana gupta ने कहा…

lajawaab....isi prashn ka uttar milna mushkil hai magar dhoondho to milta jaroor hai bas utkat chah honi chahiye............bahut badhiya likha hai.

yogesh ji maine blog par 1-2 nayi post dali hain waqt mile to dekhiyega.

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

वाह जी वाह बहुत सुंदर बेहतरीन

संजीव गौतम ने कहा…

`एएक प्रश्न जो सबके सामने है और हर संवेदनशील मनुष्य जिसका उत्तर जानना चाहता है. बहुत बढिया.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत सुंदर नज़्म ......मन के भावों को बखूबी पिरोया है आपने ....!!

निर्मला कपिला ने कहा…

खुद की तलाश ही मुश्किल है अगर खुद को तलाश लें तो वो जरूर अन्दर ही मिलता है अध्यात्म रंग मे रंगी सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई्

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

kshama ने कहा…

बिखरे सितारे ! ७) तानाशाह ज़माने !
पूजा की माँ, मासूमा भी, कैसी क़िस्मत लेके इस दुनियामे आयी थी? जब,जब उस औरत की बयानी सुनती हूँ, तो कराह उठती हूँ...

लाख ज़हमतें , हज़ार तोहमतें,
चलती रही,काँधों पे ढ़ोते हुए,
रातों की बारातें, दिनों के काफ़िले,
छत पर से गुज़रते रहे.....
वो अनारकली तो नही थी,
ना वो उसका सलीम ही,
तानाशाह रहे ज़माने,
रौशनी गुज़रती कहाँसे?
बंद झरोखे,बंद दरवाज़े,
क़िस्मत में लिखे थे तहखाने..

Aapkee rachnaon pe comment karne jaisee qabiliyat nahee rakhtee..! Rahnumayi to aapkee chahtee hun!

Pranjal ने कहा…

wakaee bada hi mushkil hai janna ki kaun hai wo jo nit nit hamare andar samaye hue hai...aur hame duniya ke nitnaveen rangon se parishay kara raha hai... aji kaun ho tum... kabhi samne n aana... tumhara rup dekhne hetu abhi hame parthatwa prapt karana shesh hai mere mohak mohan...

atisundar rachna... yogesh ji ,mujhe bada hi aanand hua jab aapko apne blog par dekha... akinchan ke laghu pratibha ka samman kiya hai aapne... aapka prashn ab jald hi apna.. aayam pane wala hai...KAUN HO TUM!