चलिए ब्लॉग के दूसरे वर्ष कि शुरुआत करते हैं आजही लिखी इस रचना से. आज अरहर कि दाल और चावल खाने कि इच्छा हुई सुबह सुबह पत्नी से कविता में इसकी मांग कर बैठे , मांग क्या कर बैठे मुखड़ा भा गया और इस रचना ने पदार्पण किया , गौर फरमाएं.
मज़ा कुछ और है
अरहर कि दाल, चावल , और संग हो मांडिया
साथ हो चटनी पुदीने की, मज़ा कुछ और है
उच्च कुल की हो , गुणी हो , सभ्य हो
पत्नी हो शिक्षित नगीने -सी , मज़ा कुछ और है
बाप हो सूफी , हो शादी पूत की
और करे वो बात पीने की, मज़ा कुछ और है
एक दिन महीने में वेतन क्या मज़ा
हर तिथि , वेतन, महीने की, मज़ा कुछ और है
ईंट और रोड़ा , कहीं का जोड़ कर
कोशिशें हों जब , करीने की, मज़ा कुछ और है
रोग हो घातक , खड़ी सिर मौत हो
और हो फिर बात, जीने की, मज़ा कुछ और है
हो शहादत देश की खातिर अगर
और निशानी, ज़ख्म, सीने की, मज़ा कुछ और है
प्यार हो सबसे , खुदा का नाम हो
सैर, फिर मक्का-मदीने की, मज़ा कुछ और है
*****************
9 टिप्पणियां:
Sabse pahle to ek saal poora hone par bhadhayi..Ye kameene waali lines khas hi hain ..
पहले वर्ष की पूर्णता और दूसरे वर्ष की पहली प्रविष्टी पर बधाई!
कविता पढ़कर तो आनन्द आ गया!
DOSRI PAARI KI DHAMAAKEDAAR SHURUAAT KE LIYE SHUBHKAAMNAAYEN ........
KAVITA MAJEDAAR HAI ....
waah waah..........gazab dha diya aaj to..........kamaal ki rachna likhi hai.
वाह वाह क्या केने क्या केने
वाह वाह आपने पहले बताया नहीं कि आप दूसरे साल की शुरुआत इतना बडिया खाना बनवा कर कर रहे हैं नहीं तो भाभी जी के हाथ क खाना खाने हम जरूर आते। बहुत बहुत बधाई ब्लाग के दूसरे साल की नै पोस्ट के लिये।
sabse pahle dhero badhai dil se deti hoon aapko ,
ye shirshak sirf rachna ke liye hi nahi aapke blog ke liye bhi saarthak hai ,yahan to vastav me maza kuchh aur hai ,aakhri line bahut hi sundar hai .
आपकी पुरानी डायरी में तो छुपा हुआ खजाना है ..।
bahut khub
एक टिप्पणी भेजें