यूँ तो हर रोज़ शाम आती है
मेरी तन्हाई कब मिटती है
मैं तो पीता हूँ कुछ शराब मगर
याद उनकी तो मुझको खाती है
उनसे मिलना तो अब हुआ मुश्किल
आखिरी आस एक पाती है
यूँ तो हैं फोन भी मोबाइल भी
नम्बरों की कमी सताती है
हमने सोचा था वो सदा देगी
पर क्या गूंगी कभी बुलाती है
इश्क की आग भी अजब शै है
जब बुझाओ भड़कती जाती है
अब तो बस देखना यही है स्वप्न
कैसे किस्मत हमें मिलाती है
योगेश swapn
4 टिप्पणियां:
योगेश जी नमस्कार,
बहोत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने बहोत खूब..आप अन्यथा ना ले मगर मुझे ग़ज़ल के मतले के काफिये में कुछ गडबडी दिखी कृपया उसे सुधारले ... ढेरो बधाई और साधुवाद...
अर्श
लिखे जायिए निखार आ रहा है
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http://prajapativinay.blogspot.com/
waah bahut khub
योगेश भाई
, वाह क्या ग़ज़ल है।
लिखते रहें। आपको क्रिस्मिस की ढेरों बधाईयां।
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