आज महफिल में कोई शम्मा फरोजां होगी
कोई इश्क में झुलसेगा, कहीं पिघलती जाँ होगी
चली कली परदेस छोड़ बाबुल का गाँव
कोई आँगन सूना होगा, औ कहीं खुशियाँ होंगी
किसको अपना कहे , सुनाये हाल-ऐ-दिल
अपने तो सब छूट गए, अपने घर तन्हां होगी
आज उठेगा किसी का घूंघट , पहली बार
दिल तो मचल रहा होगा, मगर लबों पर ना होगी
अपने मधुकर को पाकर, होगी आज निहाल
कोई दूरी आज नहीं दो जिस्मों के दरम्यां होगी
सृष्टि चक्र चलाने को, मिल जायेंगे हृदय पुनीत
नई कोपलें फूटेंगी फिर, धरती क्यूँ वीरां होगी
कोई इश्क में झुलसेगा, कहीं पिघलती जाँ होगी
चली कली परदेस छोड़ बाबुल का गाँव
कोई आँगन सूना होगा, औ कहीं खुशियाँ होंगी
किसको अपना कहे , सुनाये हाल-ऐ-दिल
अपने तो सब छूट गए, अपने घर तन्हां होगी
आज उठेगा किसी का घूंघट , पहली बार
दिल तो मचल रहा होगा, मगर लबों पर ना होगी
अपने मधुकर को पाकर, होगी आज निहाल
कोई दूरी आज नहीं दो जिस्मों के दरम्यां होगी
सृष्टि चक्र चलाने को, मिल जायेंगे हृदय पुनीत
नई कोपलें फूटेंगी फिर, धरती क्यूँ वीरां होगी
17 टिप्पणियां:
ACHHI RACHANA AUR KHUBSURAT KHAYALAAT KE LIYE BADHAAYEE SWIKAAREN..
ARSH
bahut hi khubsurat,man ke komal bhav saji sunder rachana waah
अपने मधुकर को पाकर, होगी आज निहाल
कोई दूरी आज नहीं दो जिस्मों के दरम्यां होगी
सृष्टि चक्र चलाने को, मिल जायेंगे हृदय पुनीत
नई कोपलें फूटेंगी फिर, धरती क्यूँ वीरां होगी
चली कली परदेस छोड़ बाबुल का गाँव
कोई आँगन सूना होगा, औ कहीं खुशियाँ होंगी
भावों से लबरेज गजल।
पढकर मजा आ गया।
मुबारकवाद।
aachchee rachanaa.....
बढिया लिखा ... बधाई स्वीकार करें।
'चली कली परदेस छोड़ बाबुल का गाँव
कोई आँगन सूना होगा, औ कहीं खुशियाँ होंगी'
-दो शेरो में मिश्रित भाव हैं बाकि सभी शेरो में
मिलन के भाव मुखरित हैं .अच्छी रचना है.
बहुत खूबसूरत................सर जी ।
bahut sundar rachna hai bahut bahut badhai
achchi bhavavyakti.
मधुर रचना.........सुन्दर शब्द संयोजन
namastey uncle...!!!
sabse pehle to main aapko dhanyawaad kehna chahunga ki aap meri har rachna padhte hain or us par apne vichar vyakt karte hain.
aapke sahyog ka main aabhaari hoon.
bahut hi bhav-purn rachna rahi aaj ki. or mera naam padhkar bahut khushi hui... :))
सृष्टि चक्र चलाने को, मिल जायेंगे हृदय पुनीत
नई कोपलें फूटेंगी फिर, धरती क्यूँ वीरां होगी
good to read one more gajal from your blog. thanks.
beautyful
आज महफ़िल में कोई शम्मा फिरोजाँ होगी
कोई इश्क में झुलसेगा कहीं पिघलती जां होगी
वल्लाह ...!! क्या कहने हैं जी....???
आज उठेगा घूँघट पहली बार
दिल तो मचल रहा होगा मगर लबों पे न होगी
सुभानाल्लाह ........!! लाजवाब कर दिया हजूर .....!!
वाह हुजूर....क्या खूब
हम तो इस मिस्रे पे काफ़िये ही ढ़ूंढ़ते रह गये और आप ने इतनी कमाल की ग़ज़ल लिख भी डाली..
"कोई इश्क में झुलसेगा, कहीं पिघलती जाँ होगी"
कुर्बान हुये हम इस खास मिस्रे पर
आज महफिल में कोई शम्मा फरोजा होगी ....गजल का भाव मनमोहक है गजल तो सबसे कठिन विधा है....आपको बधाई
पढकर मजा आ गया।
मुबारकवाद।
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