गीत को पंख लग गए होते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते
तुमको आना न था सदा पे अगर
एक उम्मीद तो जगा जाते
यूँ अंधेरों में छोड़ जाना था
एक दीपक कहीं जला जाते
ख्वाब में आ के ही कभी मिलते
एक पल तो हमें सुला जाते
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
देना था गर ज़हर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते
जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते
तुमको आना न था सदा पे अगर
एक उम्मीद तो जगा जाते
यूँ अंधेरों में छोड़ जाना था
एक दीपक कहीं जला जाते
ख्वाब में आ के ही कभी मिलते
एक पल तो हमें सुला जाते
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
देना था गर ज़हर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते
जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते
15 टिप्पणियां:
AAKHIRI SHE'R KE KYA KAHANE BAHOT HI KHUB SURAT BANA HUA HAI...ACHHE KHAYAALAAT KE SATH AAPNE LIKHE HAI TO ACHHI TO BANANI THI HI...BADHAAYEE..
ARSH
सुन्दर गीत । बेहतरीन कल्पना को शब्द में गजब का बांधा है आपने सर जी ।
एक अच्छी गीत जिसके पन्ख भी है और उडान की पुरी सम्भावना है........ thanks alot
kaun kehtaa hai in geeton ko udene ke liye pankhon kee jaroorat hai aapkee lekhanee hee kafee hai.bahut badhiyaa likhaa hai.
क्या केने क्या केने
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
bahut hi ajawab
"जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते."
दिल की गहराइयों से निकले शब्द,
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई।
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
दिल की बात लिख दी है स्वपन जी..........
सुन्दर रचना
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
'बहुत खूबसूरत ख्याल है!
सभी शेर अपनी बात मुक्कम्मल कहते हुए हैं.शिकायतें जैसी कुछ गुजारिश करती हुई यह ग़ज़ल सुन्दर बन पड़ी है.
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर देखें:- http://dakbabu.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html
'गीत को पंख लग गए होते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते'
-चाहत से
'जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते'
-कड़वाहट
तक की इस कविता के लिए साधुवाद.
अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
बेहतरीन .....!!
देना था गर जहर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते
वाह...जी वाह....बहोत खूब.....!!
कभी अपने इश्क में डुबो कर
मुझे जिन्दा कर जाते
bahut hi accha geet likha hai aapne, Badhai ho.
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