उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

गीत को पंख लग गए होते



गीत को पंख लग गए होते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते

तुमको आना था सदा पे अगर
एक उम्मीद तो जगा जाते

यूँ अंधेरों में छोड़ जाना था
एक दीपक कहीं जला जाते

ख्वाब में के ही कभी मिलते
एक पल तो हमें सुला जाते

अश्क भी आँख से जुदा हुए
काश जाते हुए रुला जाते

देना था गर ज़हर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते

जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते







15 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

AAKHIRI SHE'R KE KYA KAHANE BAHOT HI KHUB SURAT BANA HUA HAI...ACHHE KHAYAALAAT KE SATH AAPNE LIKHE HAI TO ACHHI TO BANANI THI HI...BADHAAYEE..


ARSH

Unknown ने कहा…

सुन्दर गीत । बेहतरीन कल्पना को शब्द में गजब का बांधा है आपने सर जी ।

संध्या आर्य ने कहा…

एक अच्छी गीत जिसके पन्ख भी है और उडान की पुरी सम्भावना है........ thanks alot

अजय कुमार झा ने कहा…

kaun kehtaa hai in geeton ko udene ke liye pankhon kee jaroorat hai aapkee lekhanee hee kafee hai.bahut badhiyaa likhaa hai.

ALOK PURANIK ने कहा…

क्या केने क्या केने

mehek ने कहा…

अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते
bahut hi ajawab

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते."

दिल की गहराइयों से निकले शब्द,
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते

दिल की बात लिख दी है स्वपन जी..........
सुन्दर रचना

Alpana Verma ने कहा…

अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते

'बहुत खूबसूरत ख्याल है!
सभी शेर अपनी बात मुक्कम्मल कहते हुए हैं.शिकायतें जैसी कुछ गुजारिश करती हुई यह ग़ज़ल सुन्दर बन पड़ी है.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर देखें:- http://dakbabu.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html

hempandey ने कहा…

'गीत को पंख लग गए होते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते'
-चाहत से
'जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते'
-कड़वाहट
तक की इस कविता के लिए साधुवाद.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अश्क भी आँख से जुदा न हुए
काश जाते हुए रुला जाते

बेहतरीन .....!!


देना था गर जहर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते

वाह...जी वाह....बहोत खूब.....!!

ओम आर्य ने कहा…

कभी अपने इश्क में डुबो कर
मुझे जिन्दा कर जाते

Dev ने कहा…

bahut hi accha geet likha hai aapne, Badhai ho.

Vinay ने कहा…

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