मैं तेरा गुनाहगार हूँजो चाहे सज़ा दे
महफिल में कर जलील नज़रों से गिरा दे
छोटा सा दिया इश्क का ,तेरे नाम पर जला
चाहे तो उसे आकर सरे बज्म बुझा दे
हम देखने लगे थे कई स्वप्न सरे शाम,
वो स्वप्न सभी तोड़ दे ,गफलत से जगा दे
थी आरजू यही तेरा , दीदार कर सकूँ
नाम-ओ-निशाँ मेरी ,आरजू का मिटा दे
सोचा न था की हम पर ,भरोसा नहीं तुम्हें
भरोसा ना कर भरोसे का ,भरोसा तो दिला दे
देखो ना हम से इस तरह,ना गुफ्तगू करो
कुछ और कहें आप, हमें और गुमान दे
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1 टिप्पणी:
kya kahun koi shabd nahi hai tarif ke liye bahot umda likha hai aapne ..
arsh
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