मुझसे आकर मिलो यहाँ या, मुझको पास बुलाओ श्याम
मेरे श्याम, मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम
दूर -दूर रहते रहते तो दूरी बढती जाती है
तुम तो आते नहीं तुम्हारी,यादें बहुत सताती है
दिव्य नेत्र दे दो आँखों से पर्दा ज़रा हटाओ श्याम
मेरे श्याम.........................
दूर बज रही वंशी की धुन मुझको पास बुलाती है
कभी सुनाई देती मुझको और कभी खो जाती है
आओ मेरे निकट बैठ कर वंशी आज बजाओ श्याम
मेरे श्याम.........................
भव सागर में भटक-२ कर देखा सब कुछ झूठा है
मोहन तेरी शरण में सुख है, सुख का सपना टूटा है
कृपा करो मुझपर भी अब तो अपनी शरण लगाओ श्याम
मेरे श्याम.........................
मेरी तो अभिलाषा मोहन अब तुम में मिल जाना है
थका -थका नदिया का जल हूँ, सागर आज समाना है
सागर में मिलने दो मुझको , "मैं" को आज मिटाओ श्याम
मेरे श्याम.........................
16 टिप्पणियां:
हे राम मेरे श्याम....मेरे राम
तू ही है भाग्य विधाता
मेरे राम ओ मेरे श्याम
हे मुरलीधर घनश्याम
अपने बहुत ही भक्तिमय रचना लिखी है आभार.
लाख लाख आभार
BAHOT HI KHUBSURAT KAVITA BHAJAN HAI YE PURI TARIKE SE GAAYEE JAANE WAALI HAI MAN KO MUGDH KAR DENE WAALI.... AAJKAL AAPKI BYASTATA JYADA HAI LAGTAA HAI DARSHAN NAHI HOTE...
ARSH
AWAPAN JI
MUJHE TO HAR TARAF SHYAM SHYAM HI DIKHA RAHE HAI.......
ab is madhur ,dil ki ananttam gahraiyon mein sama jane wale geet ya bhajan ke bare mein kya kahun..........sach padhte padhte usi prem ke sagar mein doob gayi jiski talash mein janmon se bhatak rahi hun.
shyam ke bin ab raha jata nhi
kya kahun kuch bhi kaha jata nhi
ab to yeh haal hai.
भक्ति की अन्यतम भावना से ओतप्रोत इस प्रविष्टि के लिये आभार । रचना सुन्दर है ।
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना है और मुझे ये महसूस हो रहा है कि मैं चारों तरफ़ श्याम ही श्याम देख रही हूँ! आपने पूरे भाव के साथ इतना सुंदर लिखा है कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर रहे हैं!
मेरी तो अभिलाषा मोहन अब तुम में मिल जाना है
थका -थका नदिया का जल हूँ, सागर आज समाना है
सागर में मिलने दो मुझको , "मैं" को आज मिटाओ श्याम
मेरे श्याम...................................................
भक्ति-भाव का अनूठा संगम।
सुन्दर प्रस्तुति।
जय हो!! सुन्दर रचना!!
bhakti kee shakti aapne paros dee. Achchha laga.
lagta hai ye aapke priy vishayo me se ek hai...achha likha aapne
बहुत भावपूर्ण भजन की रचना की है आपने...बधाई...
नीरज
दूर -दूर रहते रहते तो दूरी बढती जाती है
तुम तो आते नहीं तुम्हारी,यादें बहुत सताती है
दिव्य नेत्र दे दो आँखों से पर्दा ज़रा हटाओ श्याम
swapan ji.......... prabhoo ki sharan mein to sab kuch mil jaata hai..... divy netr to apne aap hi mil jaate hain. jab prabhoo mil jaate hain
दूर -दूर रहते रहते तो दूरी बढती जाती है
तुम तो आते नहीं तुम्हारी,यादें बहुत सताती है
दिव्य नेत्र दे दो आँखों से पर्दा ज़रा हटाओ श्याम
वाह....!!
ईश्वर की स्तुति और इतनी लाजवाब ......!?!
पढ़ते-पढ़ते माहौल ही श्याम मय हो गया स्वपन जी .जो पंक्ति शास्त्री जी ने दोहराई वो मुझे भी पसंद ,भक्ति रस आपके भीतर भरपूर है .शानदार
मेरी तो अभिलाषा ..............समर्पण का अनन्य भावबहुत सुन्दर बन पड़ा है ! भक्ति की यह धाराऔर छंदबद्ध लेखन मन को प्रफुल्लित कर देती हैं !
हरे कृष्णा
श्याम में इतना आकर्षण ही है के कोई भी बच नही पाता है .और जिसे वो भा जाते है उसकी व्याकुलता ऐसी ही होती है
"मेरी तो अभिलाषा मोहन अब तुम में मिल जाना है
थका-थका नदिया का जल हूँ,सागर आज समाना है "
कृष्णा आपके आत्मा की तड़प को अपनी अहैतुकी कृपा से मिटाए .मेरी यही शुभकामना है .
हरे कृष्णा
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