उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी

तुझको यकीन हो ना हो , लेकिन है सच यही
हमने तो अपनी जिंदगी तुझपर निसार दी

इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी

चाँद तारों की तमन्ना की नहीं तेरे सिवा
किस्मत, हमारी याद भी, तूने बिसार दी

यूँ तो यकीन पर है ये दुनिया टिकी हुई
वापस यकीन टूट कर, पाई , उधार दी

मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी

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24 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! जिन्दगी तेरे होके गुजार दी...सुन्दर!!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बढ़िया कविता..
शब्दों और विचारों से आपने कविता निखार दी..धन्यवाद

Vandana Singh ने कहा…

waaaah waaaaaah sir bahut khooob ..
jab aashik mast fakeer hue fir kya cheez vajeeri hai

Milind Phanse ने कहा…

किस्मत, हमारी याद भी, तूने बिसार दी
- वाह.

मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी

- क्या बात है. बधाई.

vandana gupta ने कहा…

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी

behtreen shabd ,behtreen nazm........badhaayi.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SWAPAN JI .... BAHOOT HI KAMAAL KE SHER HAIN POORI GAZAL MEIN ... LAJAWAAB

kshama ने कहा…

Poora nichod aage rakh diya aapne is rachnake dwara..'duniyaakee thodee laaj thee, wo bhi utar dee..kyonki, zindagee teree hoke guzaar dee..!'

ओम आर्य ने कहा…

एक बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
योगेश जी
सुन्दर बात कही आपनी रचना के माध्यम से!

Yogendramani ने कहा…

बहुत खूब ..क्या बात है !
.आपके शब्दों ने तो गज़ल ही सवांर दी.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

योगेश जी अगर उस दर्द के थोडा नजदीक आ जाते तो दिमाग की इतनी exercise नहीं होती ....आपके ही शे'र को थोडा उलट दूँ अगर .......

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
तेरे होते भी ज़िन्दगी तन्हाई में गुजार दी

चाँद तारों की तमन्ना की नहीं थी कभी
खुदा से मांगी थी मोहब्बत वो भी नकार दी

ग़ज़ल लाजवाब है सभी शे'र एक से बढ़ कर एक .....!!

"अर्श" ने कहा…

kya khub baat ki hai aapne tisare she'r me .. is umra me bhi tau ji .. :) :)


arsh

ज्योति सिंह ने कहा…

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी
wah kya kahane bahut sundar bahut gahri baat kah rahi hai aapki rachna .
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
bahut khoob

Alpana Verma ने कहा…

मन के भाव 'ख्याल 'बन कर ग़ज़ल का रूप लेते हैं तो एक खूबसूरत प्रस्तुति हो जाती है.
'इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी!'

बहुत बढ़िया!

गौतम राजऋषि ने कहा…

चंद मिस्रे वाकई बहुत अच्छे बुने है योगेश जी!

वाणी गीत ने कहा…

जिंदगी तेरी हो के गुजार दी ...न करे कोई यकीन ...हमें है ...पूरा यकीन ..जिंदगी आपने उसकी होके ही गुजर दी ...कविता बता रही है ...!!

Urmi ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने! बढ़िया लगा!

M VERMA ने कहा…

इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी
भरोसा तूफानो के आने से नही टूटता. कश्ती तो पार लगना ही है
बेहतरीन रचना

sandeep sharma ने कहा…

मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी

बहुत ही खूबसूरत लिखा है...

mark rai ने कहा…

hi sir.........zindagi hans ke gujaar di....
........behtarin rachna........

daanish ने कहा…

mujrim hua hu jb se ilzaam-e-ishq ka, duniya ki thorhi laaj thi wo bhi utaar dii...

kayaa tevar haiN huzoor !!
khair...gzl ke sabhi sher
achhe haiN...
kehan meiN prabhaav jhalaktaa hai

निर्मला कपिला ने कहा…

मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि किस किस पंक्ति की तारीफ करूँ पूरी रचना ही लाजवाब है शुभकामनायें

Puneet Sahalot ने कहा…

namastey uncle...

likha to bahut khoob hai aapne...
par agar buraa naa maane to ek baat puchhu....
ye kab or kiske liye likhi gayi thi... hmm...

"मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी"

महावीर ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत ख्यालों से सजाएं हैं ये अ'शार.
महावीर शर्मा

Abhinav Sabyasachi Paul ने कहा…

मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी

wah!!