हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी
तुझको यकीन हो ना हो , लेकिन है सच यही
हमने तो अपनी जिंदगी तुझपर निसार दी
इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी
चाँद तारों की तमन्ना की नहीं तेरे सिवा
किस्मत, हमारी याद भी, तूने बिसार दी
यूँ तो यकीन पर है ये दुनिया टिकी हुई
वापस यकीन टूट कर, पाई , उधार दी
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
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24 टिप्पणियां:
वाह!! जिन्दगी तेरे होके गुजार दी...सुन्दर!!
बढ़िया कविता..
शब्दों और विचारों से आपने कविता निखार दी..धन्यवाद
waaaah waaaaaah sir bahut khooob ..
jab aashik mast fakeer hue fir kya cheez vajeeri hai
किस्मत, हमारी याद भी, तूने बिसार दी
- वाह.
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
- क्या बात है. बधाई.
हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी
behtreen shabd ,behtreen nazm........badhaayi.
SWAPAN JI .... BAHOOT HI KAMAAL KE SHER HAIN POORI GAZAL MEIN ... LAJAWAAB
Poora nichod aage rakh diya aapne is rachnake dwara..'duniyaakee thodee laaj thee, wo bhi utar dee..kyonki, zindagee teree hoke guzaar dee..!'
एक बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
योगेश जी
सुन्दर बात कही आपनी रचना के माध्यम से!
बहुत खूब ..क्या बात है !
.आपके शब्दों ने तो गज़ल ही सवांर दी.
योगेश जी अगर उस दर्द के थोडा नजदीक आ जाते तो दिमाग की इतनी exercise नहीं होती ....आपके ही शे'र को थोडा उलट दूँ अगर .......
हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
तेरे होते भी ज़िन्दगी तन्हाई में गुजार दी
चाँद तारों की तमन्ना की नहीं थी कभी
खुदा से मांगी थी मोहब्बत वो भी नकार दी
ग़ज़ल लाजवाब है सभी शे'र एक से बढ़ कर एक .....!!
kya khub baat ki hai aapne tisare she'r me .. is umra me bhi tau ji .. :) :)
arsh
हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी
wah kya kahane bahut sundar bahut gahri baat kah rahi hai aapki rachna .
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
bahut khoob
मन के भाव 'ख्याल 'बन कर ग़ज़ल का रूप लेते हैं तो एक खूबसूरत प्रस्तुति हो जाती है.
'इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी!'
बहुत बढ़िया!
चंद मिस्रे वाकई बहुत अच्छे बुने है योगेश जी!
जिंदगी तेरी हो के गुजार दी ...न करे कोई यकीन ...हमें है ...पूरा यकीन ..जिंदगी आपने उसकी होके ही गुजर दी ...कविता बता रही है ...!!
वाह बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने! बढ़िया लगा!
इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी
भरोसा तूफानो के आने से नही टूटता. कश्ती तो पार लगना ही है
बेहतरीन रचना
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
बहुत ही खूबसूरत लिखा है...
hi sir.........zindagi hans ke gujaar di....
........behtarin rachna........
mujrim hua hu jb se ilzaam-e-ishq ka, duniya ki thorhi laaj thi wo bhi utaar dii...
kayaa tevar haiN huzoor !!
khair...gzl ke sabhi sher
achhe haiN...
kehan meiN prabhaav jhalaktaa hai
मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि किस किस पंक्ति की तारीफ करूँ पूरी रचना ही लाजवाब है शुभकामनायें
namastey uncle...
likha to bahut khoob hai aapne...
par agar buraa naa maane to ek baat puchhu....
ye kab or kiske liye likhi gayi thi... hmm...
"मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी"
बहुत ही खूबसूरत ख्यालों से सजाएं हैं ये अ'शार.
महावीर शर्मा
मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी
wah!!
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