आदमी(इंसान नहीं )
आदमी को मार कर खायेगा आदमी
एक दिन ऐसा भी अब आएगा आदमी
जानवर को मात कर जाएगा आदमी
अपना असली रूप दिखलायेगा आदमी
बेशरम हो अब ना शरमाएगा आदमी
और रब से भी ना घबराएगा आदमी
कैसे कैसे ज़ुल्म अब ढाएगा आदमी
ज़ुल्म-ओ-सितम की आग बरसायेगा आदमी
आँख में फूले फलेगा बाल सूअर का
जब भी नेता बन के आ जाएगा आदमी
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21 टिप्पणियां:
हां सच कह रह हैं आप बहुत जल्द ही ऐसा दिन भी आने वाला ही है
बहुत बढिया!!
विद्रूप हकीकत बयाँ की है आपने
बेहतरीन
ऐसे दिन की भूमिका बंध गई है जी!
सच कहा आपने!!
ek katu hakeekat ko bayan kiya hai aur sach kaha hai.
सच कहा ऐसा समय आने वाला है ......... बहुत लाजवाब लिखा है .........
स्वपन जी बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई कई दिन से इस ब्लाग पर नहीं आ पाई क्षमा चाहती हूँ। दूसरे ब्लाग से ही लैट जाती थी। शुभकामनायें
इतना ना डराइये, इतना नहीं डरेगा
जमाये रहिए।
yogesh ji,
Sach kaha hai apne. aise hi asaar nazar aa rahe hain.badhai!!
behter abhivyakti....
बहुत अच्छी एवं सुन्दर रचना
बहुत -२ आभार
आदमी का विकृत रुप.वर्तमान और भविष्य!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हो गया.आपकी पुरानी कई रचनाएँ पढ़ीं निशब्द और मौन हो गयी हूँ
आभार
जानवर को मात कर जाएगा आदमी
अपना असली रूप दिखलायेगा आदमी
bhayavah hai chitra magar sachcha hai.
aadmi apna swaroop badla raha ,aese me to rakshak hi bhkshak ho jaayega aur kai had tak ho bhi gaya ,tulna ke liye rakshas shabd hi lupt ho gaya ,dekh tere sansaar ki haalat kya hogi bhagvaan.......
arthpoorn ,gambhirta ka vishya ..
स्वप्न जी
कृष्ण भक्ती से लोक भक्ती में रम रहे हो धीरे धीरे जम रहे हो
शुभ कामनाये
haalaat to kuch aise hi ho rahe hai..
आदमी का यह रूप दिखाना प्रारम्भ हो चुका है.
शिर्षक ही इतना लाजवाब था कि क्या कहें योगेश जी।
लाजवाब रचना!
बहुत खूब अच्छी रचना
बधाई स्वीकारें
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