तड़प-२ के गा रहा है, गीत कोई प्यार के
क्यूँ खिजां को आ रहे हैं याद दिन बहार के
खुशबुओं को ले गया कोई चमन उजाड़ के
जी रहा है आज कोई अपने मन को मार के
तड़प..................................................
चल पड़े हैं साथ कई काफिले उधर के
बस वही नहीं है जिसको हो सुकून निहार के
तड़प...............................................
क्या बचा है जिंदगी में जिंदगी गुज़र के
एक बार देख जाओ बस कफ़न उतर के
तड़प.................................................
"स्वप्न" टूट -२ कर इस कदर बिखर गया
जैसे पारा फ़ैल जाए फर्श पर बुखार के
तड़प.................................................
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3 टिप्पणियां:
bahut khubsurat nazam,bahut badhai,naya saal mubarak.
वाह वाह वाह..हर शेर भावपूर्ण....! बहुत अच्छे....!
very nice aap itne ghere shabd kaise likh lete
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