ढाई अक्षर प्यार का, ना, कर सका कुछ
झूठ को सच, और सच को, झूठ करती आई दुनिया
बेशर्म, करते हुए, ये सब,नहीं शरमाई दुनिया
बेगुनाहों को, सजा मिलती रही,क्यूँ
कर सकी ना, आज तक भरपाई दुनिया
दीन दुखियों की सदा पर, ऊंघती,
और पैसे की सदा पर,जाग कर उठ धाई दुनिया
ढाई अक्षर प्यार का, ना कर सका कुछ
"स्वप्न " उसने पा के भी,ना ,पाई दुनिया
"स्वप्न" सच्चा जो,खुदा के सामने
उसने हो बेख़ौफ़, ये ठुकराई दुनिया
************
10 टिप्पणियां:
सही है... यहाँ प्यार करनेवाले बहुत कम हैं... इसीलिए इस दुनिया की नफरत ख़त्म ही नहीं होती...
बहुत खूब...
झूठ को सच, और सच को, झूठ करती आई दुनिया
बेशर्म, करते हुए, ये सब,नहीं शरमाई दुनिया
बहुत सुन्दर रचना ! दुनिया पूजती है भगवान को पर मानती है शैतान को ...
बहुत खूब ... स्वपन जी सही कहा है आपने ..
बहुत खूबसूरत रचना ..
sach ko dikhatee bahut hee sundar rachna..
यहाँ गम ही जिंदगी है,
यहाँ गम ही आशिकी-
जहाँ कोई गम नहीं हो, मुझे ले चलो वहां|
हर कोई जीना चाहे,
पर जीने न दे किसी को-
ऐसी जिंदगी नहीं हो, मुझे ले चलो वहां|
आखिरी टुकड़ा बहुत ही ज्यादा कशिश भरा लगा
यह सरल रचना , बहुत कुछ कह रही है !
शुभकामनायें आपको !
Bahut dinon baad aapne likha hai,lekin likha waaqayi behtareen hai!
Nahee,duniya nahee sharmati!
झूठ को सच, और सच को, झूठ करती आई दुनिया
बेशर्म, करते हुए, ये सब,नहीं शरमाई दुनिया
Sach hi hai swapn jee..
sundar prastuti .. badhai !
एक टिप्पणी भेजें