बेरुखी अच्छी नहीं होती सदा मेरे हुज़ूर
क्यूँ चुराते हो निगाहें , छोड़ दो सारा गुरूर
दिल से दिल की बात कर लो , प्यार दो और प्यार लो
छोड़ कर सारे गिले , भूल कर सारे kusoor
जिंदगी है चार दिन की , फिर मिलें या न मिलें
ढल न जाए उम्र सारी , ढल न जाए ये सुरूर
दिल तड़प के दे रहा है ये सदा , आ जाओ ना
दिल का शीशा कर ना देना बेदिली से चूर चूर-२
दूर जाते हो तो जाओ, है मगर दावा मेरा
तुम को हंस कर मेरी बाँहों में ,समाना है ज़रूर।
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6 टिप्पणियां:
योगेश जी सबसे पहले तो आपको नववर्ष की हार्दिक बधाई
आज शायद पहली बार आपके ब्लाग पर आया तो चेहरा खिल गया इतनी अच्छी रचना को पढकर मजा आ गया
बेरुखी अच्छी नहीं होती सदा मेरे हुज़ूर
क्यूँ चुराते हो निगाहें , छोड़ दो सारा गुरूर
दिल से दिल की बात कर लो , प्यार दो और प्यार लो
छोड़ कर सारे गिले , भूल कर सारे kusoor
बेहतरीन रचना के लिए बारम्बार बधाई आपको
bahot khub likha hai aapne sahab dhero badhai aapko.....
arsh
हम अक्सर जो ग़ज़ल समझकर लिखते हैं.....बेशक उनका भाव तो अच्छा ही होता है.....मगर उनमे रवानगी नहीं होती....सच्चे अर्थों में उन्हें ग़ज़ल ना कहकर कविता का ही एक रूप कहा जा सकता है....!!
बढ़िया, रंग में रंग मिला-सा लगता है
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
प्यारी-सी गजल. धन्यवाद.
ब्लोग पर आने के लिये पुनः धन्यवाद.
अच्छी कोशिश है, आपने मानो ब्लौग को काव्य सभा बना दिया है, बहुत बहुत धन्यवाद
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