उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

बेरुखी अच्छी नहीं...........

बेरुखी अच्छी नहीं होती सदा मेरे हुज़ूर
क्यूँ चुराते हो निगाहें , छोड़ दो सारा गुरूर

दिल से दिल की बात कर लो , प्यार दो और प्यार लो
छोड़ कर सारे गिले , भूल कर सारे kusoor

जिंदगी है चार दिन की , फिर मिलें या न मिलें
ढल न जाए उम्र सारी , ढल न जाए ये सुरूर

दिल तड़प के दे रहा है ये सदा , आ जाओ ना
दिल का शीशा कर ना देना बेदिली से चूर चूर-२

दूर जाते हो तो जाओ, है मगर दावा मेरा
तुम को हंस कर मेरी बाँहों में ,समाना है ज़रूर।

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6 टिप्‍पणियां:

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

योगेश जी सबसे पहले तो आपको नववर्ष की हार्दिक बधाई
आज शायद पहली बार आपके ब्‍लाग पर आया तो चेहरा खिल गया इतनी अच्‍छी रचना को पढकर मजा आ गया

बेरुखी अच्छी नहीं होती सदा मेरे हुज़ूर
क्यूँ चुराते हो निगाहें , छोड़ दो सारा गुरूर

दिल से दिल की बात कर लो , प्यार दो और प्यार लो
छोड़ कर सारे गिले , भूल कर सारे kusoor

बेहतरीन रचना के लिए बारम्‍बार बधाई आपको

"अर्श" ने कहा…

bahot khub likha hai aapne sahab dhero badhai aapko.....



arsh

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

हम अक्सर जो ग़ज़ल समझकर लिखते हैं.....बेशक उनका भाव तो अच्छा ही होता है.....मगर उनमे रवानगी नहीं होती....सच्चे अर्थों में उन्हें ग़ज़ल ना कहकर कविता का ही एक रूप कहा जा सकता है....!!

Vinay ने कहा…

बढ़िया, रंग में रंग मिला-सा लगता है

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

Himanshu Pandey ने कहा…

प्यारी-सी गजल. धन्यवाद.
ब्लोग पर आने के लिये पुनः धन्यवाद.

Safat Alam Taimi ने कहा…

अच्छी कोशिश है, आपने मानो ब्लौग को काव्य सभा बना दिया है, बहुत बहुत धन्यवाद