बेकरारों कि तरह अबकी दफा लगते हैं
हमको हर बार वो क्यूँ तस्वीर-ए-वफ़ा लगते हैं
हम तो सजदे में हैं वो हमसे खफा लगते हैं
जाने क्यूँ चाहे ये मन उनके लिए लुट जाना
सौदा घाटे का सही हमको नफा लगते हैं
कितनी शिद्दत से छिपाते हैं मेरा राज़ वो फिर
कैसे कह दूँ के हमें बेवफा लगते हैं
कैसे कह दूँ कि उन्हें प्यार नहीं है हमसे
बेकरारों कि तरह अबकी दफा लगते हैं
***********
10 टिप्पणियां:
बढ़िया रचना शर्माजी.. आभार
जाने क्यों----
कैसे कह दूँ
वाह बहुत सुन्दर शेर हैं। धन्यवाद।
बहुत खूब ...
वाह! बहुत दिनो बाद आपकी रचना पढने को मिली बेहद उम्दा प्रस्तुति।
बढ़िया गजल है!
Nihayat sundar rachana!
बहुत सुन्दर रचना!
--
इसकी चर्चा चर्चा मंच पर भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.html
जाने क्यूँ चाहे ये मन उनके लिए लुट जाना
सौदा घाटे का सही हमको नफा लगते हैं
ये नफे का ही सौदा है स्वपन जी .... वो खुश तो सब जगत खुश .... बहुत दिन बाद लिखा है आपने कुछ .. कहाँ रहे अब तक .. आशा है सब कुशल से होगा ...
बेहतरीन ग़ज़ल है !
बाल दिवस की शुभकामनायें !
हमको हर बार वो क्यूँ तस्वीर-ए-वफ़ा लगते हैं
हम तो सजदे में हैं वो हमसे खफा लगते हैं
exceelent
एक टिप्पणी भेजें