उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

बुधवार, 31 दिसंबर 2008

तड़प -२ के गा रहा है................

तड़प-२ के गा रहा है, गीत कोई प्यार के
क्यूँ खिजां को आ रहे हैं याद दिन बहार के

खुशबुओं को ले गया कोई चमन उजाड़ के
जी रहा है आज कोई अपने मन को मार के
तड़प..................................................

चल पड़े हैं साथ कई काफिले उधर के
बस वही नहीं है जिसको हो सुकून निहार के
तड़प...............................................

क्या बचा है जिंदगी में जिंदगी गुज़र के
एक बार देख जाओ बस कफ़न उतर के
तड़प.................................................

"स्वप्न" टूट -२ कर इस कदर बिखर गया
जैसे पारा फ़ैल जाए फर्श पर बुखार के
तड़प.................................................

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सोमवार, 29 दिसंबर 2008

अब तो बेहतर है................

अब तो बेहतर है हमें तुम भूल जाओ
न कभी लब पर हमारा नाम लाओ
अब तो ...........................................

टूटे स्वप्नों का महल खंडहर हुआ
हार बैठे हम ये जीवन का जुआ
सारे गम दे दो हमें खुशियाँ मनाओ
अब तो ..........................................

वो पुराने दिन न लौटेंगे दुबारा
वो गली वो छत वो पीपल वो चौबारा
लूट कर मुझको लो अपना घर सजाओ
अब तो.............................................

जिंदगी सारी गुजारी है विरह में
याद के नश्तर से चुभते हैं ह्रदय में
अब न ज़ख्मों पर मेरे मरहम लगाओ
अब तो.............................................

रविवार, 28 दिसंबर 2008

दर्द ने जब खटखटाया .......................

दर्द ने जब खटखटाया दिल का द्वार
एक नया नगमा बना कर सो गया

जब कभी पूछा किसी ने कौन थी
"स्वप्न" का किस्सा सुना कर सो गया

नींद जब आंखों से गायब हो गई
गीत अपना गुन गुना कर सो गाया

याद जब उसकी अचानक आ गई
प्यास होठों की बुझा का सो गया

जब शुरू उसने किए शिकवे गिले
मुस्कुराया मुस्कुरा कर सो गया।

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एक नाम

ताउम्र मेरे ज़हन में आता रहा एक नाम
हर नज़्म हर एक गीत में गाता रहा एक नाम

दे दे के सदा मुझको बुलाता रहा एक नाम
पीड़ा से मुझको अपनी रुलाता रहा एक नाम

आंसुओं से देख लो ये भर गया दामन
खैरात खुले हाथ लुटाता रहा एक नाम

मजबूरियां थीं कोई जाना पड़ा विदेश
राधा-सा , फिर भी साथ निभाता रहा एक नाम
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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

अजनबी सा.............................

अजनबी सा लग रहा है ये शहर
जैसे इससे वास्ता कोई न था

घूम फिर कर फिर वहीँ पर आ गए
कोई मंजिल रास्ता कोई न था

क्यूँ किसी से प्यार की उम्मीद की
बस उधारी थी जमा कोई न था

कर दिया खाली किराये का मकान
लामकां थे हम मकान कोई न था

छोड़ कर duniya ,akele चल दिए
hamsafar या kaarvan कोई न था

स्वप्न की कोई haqiqat थी कहाँ
बस tasavvur था निशान कोई न था

योगेश स्वप्न

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

यूँ तो हर रोज़ शाम आती है

यूँ तो हर रोज़ शाम आती है
मेरी तन्हाई कब मिटती है

मैं तो पीता हूँ कुछ शराब मगर
याद उनकी तो मुझको खाती है

उनसे मिलना तो अब हुआ मुश्किल
आखिरी आस एक पाती है

यूँ तो हैं फोन भी मोबाइल भी
नम्बरों की कमी सताती है

हमने सोचा था वो सदा देगी
पर क्या गूंगी कभी बुलाती है

इश्क की आग भी अजब शै है
जब बुझाओ भड़कती जाती है

अब तो बस देखना यही है स्वप्न
कैसे किस्मत हमें मिलाती है

योगेश swapn

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

तुम्हारा जन्म दिन

मुझे सबसे प्यारा तुम्हारा जन्म दिन
मेरी जिंदगी का सहारा जन्म दिन, तुम्हारा जन्म दिन...................

बड़ी इंतजारी करा के जो आता
मैं साल भर जिसके सपने सजाता
हर बार रब से दुआ ये ही करता
हर बार आए दुबारा जन्म दिन
तुम्हारा जन्म दिन...........................................

कभी कार्ड भेजा कभी फूल भेजा
कभी दिल की बातों को दिल में सहेजा
कभी हंस के रो के कभी तिल मिला के
कभी कैसे कैसे गुज़ारा जन्म दिन
तुम्हारा......................................................

कभी फ़ोन में तुमको शुभ कामना दी
कभी गीत में भरके शुभ भावना दी
मगर ये शिकायत रही मौन तेरा
नहीं तोड़ पाया तुम्हारा जन्म दिन
तुम्हारा.................................................

पच्चीस पचत्तर या सौ हों या ज्यादा
तुम्हारा जन्म दिन मानाने का vada
है पक्का इरादा नहीं कोई बाधा
ari मेरी "राधा" तुम्हारा जन्म दिन
तुम्हारा जन्म...................योगेश swapn

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

दोस्ती............

आज सुबह मेरे परम मित्र म.र.गुप्ता जी का एक समस मेसेज आया मेसेज इस प्रकार था

बोलती है दोस्ती, छुपता ई प्यार

हंसाती ई दोस्ती रुलाता है प्यार

मिलाती है दोस्ती जुदा करता है प्यार

फिर भी क्यों दोस्ती छोड़ कर लोग करते हैं प्यार...............

इस समस को पाकर कुछ पंक्तियन लिखीं आप भी गौर फरमाएं ...

दोस्ती बस नाम की वो दोस्ती किस काम की
दोस्ती वो दोस्ती जो है सुदामा श्याम की

प्यार है अपनी जगह दोस्ती अपनी जगह
रुतबा बड़ा है दोस्ती का प्यार से, कुछ है वजह

रुक्मिणी को छोड़ भागे थे कन्हाई
है सुदामा द्वार पर जाऊं लेवाई

हाँ,परन्तु प्यार दोनों में छुपा है
प्यार की खातिर भी ताज लुटा है

बस प्यार में ही न कोई आंसू बहाता है
दोस्त भी जब दूर होता है रुलाता है

योगेश swapn

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

आसमान छूने को

आसमान छूने को पंछी उड़ चला
और गगन की दूरियां कम हो गईं
विश्वास का बल है अभी परवाज़ में
है क्षितिज के पार तक उसकी नज़र

योगेश स्वप्न

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

गिला.............

हमें बेशक भुला दें वो भुलायेंगे  न उनको हम


गिला उनसे करें क्यूँ हम, यूँही आहें भरें क्यूँ हम
मुहोब्बत गर नहीं उनको तो फिर उल्फत करें क्यूँ हम

हुई नाकाम सब कोशिश , दिलों में भी नहीं रंजिश
नहीं मरता कोई हम पर, किसी पर फिर मरें क्यूँ हम

उन्हें चाहत जो मिलने की अगर होती तो मिल जाते
हमें दीदार हो उनका , कोई ख्वाहिश करें क्यूँ हम

जुदाई की उन्हें परवाह नहीं न गम बिछुड़ने का
तो फिर उनकी जुदाई में हम ही आँखें करें क्यूँ नम

अभी तक आस थी थोड़ी मगर वो आस भी तोडी
स्वप्न का खून कर डाला सितम  आँखें हुईं बेदम

अगर वो सुन रहे हैं तो उन्हें कुछ कान में कह दूँ
हमें बेशक भुला दें वो भुलायेंगे  न उनको हम

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