उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

कुछ दोहे

जो अपनी औकात में रहकर करता बात
उसको सभ्य समाज की पड़े कभी ना लात

भूल गया निज वक़्त तू कुर्सी पा भरमाय
घूस खाए चोरी करे सबकी लेता हाय

तुझको लगता था बुरा, जो औरों का कर्म
वही कर्म अब तू करे , गई कहाँ तेरी शर्म

कुर्सी के बल कूदता , कहाँ गए संस्कार
 "केवल" कुर्सी छोड़कर ,पायेगा तिरस्कार

ये शतरंज का खेल है, खा जायेगा मात
सवा सेर है सेर को, गाँठ बाँध ले तात

रहे सुरक्षित वो सदा , झुका हुआ जो वृक्ष
तने हुए को काटना , है समाज का लक्ष्य

देने को कुछ है नहीं , बोल तो मीठे बोल
अरे  जाग अब त्याग दे , अंहकार का खोल
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कुछ दोहे लिखने की कोशिश की है कहाँ तक सफल हूँ , पता नहीं ,कुछ ख़ास नया भी नहीं दे पाया हूँ  पाठकों से विनम्र निवेदन है कमेंट्स  देते समय प्रशंसा करें ना  करें , कोई भी कमी  देखें ज़रूर बताएं,  मुझे उस कमी को दूर करने में सहायता मिलेगी, मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँगा. धन्यवाद.