अर्थ की ख्वाहिश ने क्या-क्या कर दिया
दिल था एक मासूम पत्थर कर दिया
था गगन छूने का भी दम-ख़म मगर
जालिमों ने काट एक-एक पर दिया
प्यार कर बनने लगा जो देवता
उसके सीने में भी खंजर कर दिया
जो स्वपन देखा वही टुकड़े हुआ
आँख में अश्कों का निर्झर भर दिया
जिसकी खातिर वो लड़ा, लड़ता रहा
उसने ही साबित सितमगर कर दिया
थी डुबोने को बहुत एक लहर ही
ज्वार-भाटा और समंदर कर दिया
बागबां कैसे मिले उसको "स्वप्न"
खिल रहे गुलशन को बंज़र कर दिया
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दिल था एक मासूम पत्थर कर दिया
था गगन छूने का भी दम-ख़म मगर
जालिमों ने काट एक-एक पर दिया
प्यार कर बनने लगा जो देवता
उसके सीने में भी खंजर कर दिया
जो स्वपन देखा वही टुकड़े हुआ
आँख में अश्कों का निर्झर भर दिया
जिसकी खातिर वो लड़ा, लड़ता रहा
उसने ही साबित सितमगर कर दिया
थी डुबोने को बहुत एक लहर ही
ज्वार-भाटा और समंदर कर दिया
बागबां कैसे मिले उसको "स्वप्न"
खिल रहे गुलशन को बंज़र कर दिया
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