जाम क्या पीते, जमानत जब्त है
राजनीती चीज़ क्या कमबख्त है
चाल ना कोई चली चालाक की
सुनते हैं इस बार जनता सख्त है
"हार" कोई ना मिला , बैठे हैं हार
ये मुआ चुनाव ही बेवक्त है
ईंट मिली न रोड़ा , कैसे जोड़ते
हर किसी का ताज , अपना तख्त है
लग गया था उसके मुंह मानव लहू
देख सारा जिस्म ही आरक्त है
चल पड़े हैं हज को सब से कह दिया
छोड़ कर संसार को, विरक्त हैं
अब उसे कुर्सी ना कोई चाहिए
प्रजा का सेवक, वो देश- भक्त है।
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राजनीती चीज़ क्या कमबख्त है
चाल ना कोई चली चालाक की
सुनते हैं इस बार जनता सख्त है
"हार" कोई ना मिला , बैठे हैं हार
ये मुआ चुनाव ही बेवक्त है
ईंट मिली न रोड़ा , कैसे जोड़ते
हर किसी का ताज , अपना तख्त है
लग गया था उसके मुंह मानव लहू
देख सारा जिस्म ही आरक्त है
चल पड़े हैं हज को सब से कह दिया
छोड़ कर संसार को, विरक्त हैं
अब उसे कुर्सी ना कोई चाहिए
प्रजा का सेवक, वो देश- भक्त है।
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उपरोक्त कविता में "हार " मतलब फूलों की माला, और दूसरी हार का मतलब पराजय है।
"ईंट मिली न रोड़ा" में मुहावरा "ईंट मिली न रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा"
"चल पड़े हैं हज को" में मुहावरा " सौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली" का प्रयोग है.
"आरक्त" मतलब खून से सना, खून में डूब, लाल रंग