उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नव वर्ष २०१० की हार्दिक मंगलकामनाएं





नव वर्ष २०१० की हार्दिक  मंगलकामनाएं.


ईश्वर २०१० में आपको और आपके परिवार को  सुख समृद्धि , धन वैभव ,शांति, भक्ति, और ढेर सारी खुशियाँ  प्रदान करें .

योगेश वर्मा "स्वप्न"

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

सारी गोपियाँ कहें मोहे, सांवरो कन्हाई

लीजिये प्रस्तुत है "श्याम श्याम  भजो" कैसेट से एक और रचना.

सारी गोपियाँ कहें मोहे,सांवरो कन्हाई

सारी गोपियाँ कहें मोहे,सांवरो कन्हाई
सारी गोपियाँ कहें मोहे, सांवरो कन्हाई
मोहे तू ही बता दे ,मैं का करूँ माई (२)
सारी गोपियाँ कहें..............................

सांवरो कह के , मोहे खिझावें
माखन चोरी,नाम लगावें
मैंने तोडी नहीं मटकी, दही ना चुराई
सारी गोपियाँ कहें.................................


सांवरो मेरा, नाम रहेगा
कृष्णा मुझको ,कौन कहेगा
बेर बेर मैया मोहे, आवे है रुलाई
सारी गोपियाँ कहें................................

और कहें तो,छोड़ भी दूं मैं
सबसे नाता ,तोड़ भी दूं मैं
सांवरो कहे मोहे , मेरो दाऊ भाई
सारी गोपियाँ कहें................................


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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

कहता है दिल करे यूँ शिकायत कभी कभी

कहता है दिल करे यूँ शिकायत कभी कभी

कहता है दिल करे यूँ,शिकायत कभी कभी
उसमें भी हो छिपी-सी,मुहब्बत कभी कभी

हो प्यार में अगरचे ,अदावत कभी कभी
उस पर भी हम करें एक ,दावत कभी कभी

इन्सां पे रब की हो यूँ, इनायत कभी कभी
पहुंचे जो रूह तक भी ,राहत कभी कभी

बन्दों की ऐसे लाजिम  ,हिमायत कभी कभी
मज़हब की तोड़ दें जो ,रवायत कभी कभी

हो जिक्र गर खुदा की, बाबत कभी कभी
तो मानें कृष्ण की भी ,हकीकत कभी कभी

कुरआन की पढ़ें यूँ ,आयत कभी कभी
गीता ज्यों बाँचने की, चाहत कभी कभी

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आज अभी कुछ देर पहले समीर जी (उड़न तश्तरी) के ब्लॉग पर था उनके लैपटॉप को श्रधांजलि देने के बाद कुछ दिन पहले लिखी अपनी ये पंक्तियाँ  याद आ गईं  सो आज बड़ा दिन भी है एक के साथ एक फ्री 

नहीं चाहते हुए भी सब कुछ सहना पड़ता है


नहीं चाहते हुए भी सब कुछ सहना पड़ता है
सुख में दुःख में इस दुनिया में रहना पड़ता है

प्यार अगर है तो मुख से भी कहना पड़ता है
रीत-रिवाजों की धारा में बहना पड़ता है

कितना भी हो प्यारा रिश्ता ,चट्टानों-सा दुनिया में
एक रोज़ निश्चित उसको भी ढहना पड़ता है


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बुधवार, 16 दिसंबर 2009

आदमी

आदमी(इंसान नहीं )
 
आदमी को मार कर खायेगा आदमी
एक दिन ऐसा भी अब आएगा आदमी


जानवर को मात कर जाएगा आदमी
अपना असली रूप दिखलायेगा आदमी


बेशरम हो अब ना शरमाएगा आदमी
और रब से भी ना घबराएगा आदमी


कैसे कैसे ज़ुल्म अब ढाएगा आदमी
ज़ुल्म-ओ-सितम की आग बरसायेगा आदमी


आँख में फूले फलेगा बाल सूअर का
जब भी नेता बन के आ जाएगा आदमी



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मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

मज़ा कुछ और है

चलिए ब्लॉग के दूसरे वर्ष कि  शुरुआत करते हैं आजही लिखी इस रचना से. आज  अरहर कि दाल और चावल खाने कि इच्छा हुई  सुबह सुबह पत्नी से कविता में इसकी मांग कर बैठे , मांग क्या कर बैठे  मुखड़ा भा गया और इस रचना ने पदार्पण किया , गौर फरमाएं.

मज़ा कुछ और है 


अरहर कि दाल, चावल , और संग हो मांडिया
साथ हो चटनी पुदीने की, मज़ा कुछ और है

उच्च कुल की हो , गुणी हो , सभ्य हो
पत्नी हो शिक्षित नगीने -सी , मज़ा कुछ और है

बाप हो सूफी , हो शादी पूत की
और करे वो बात पीने की, मज़ा कुछ और है

एक दिन महीने में वेतन क्या मज़ा
हर तिथि , वेतन, महीने की, मज़ा कुछ और है

ईंट और रोड़ा , कहीं का जोड़ कर
कोशिशें हों जब , करीने की, मज़ा कुछ और है

रोग हो घातक , खड़ी  सिर मौत हो
और हो फिर बात, जीने की, मज़ा कुछ और है

हो शहादत देश की खातिर अगर
और निशानी, ज़ख्म, सीने की, मज़ा कुछ और है

प्यार हो सबसे , खुदा का नाम हो
सैर, फिर मक्का-मदीने की, मज़ा कुछ और है

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गुरुवार, 26 नवंबर 2009

थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे

प्रस्तुत है एक और गीत पुरानी डायरी से.



 थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे


थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे
ले जायेंगे उस पार तुम्हें, इस पार ना  छोड़ेंगे

तुमको पाकर सदियों की, भटकन को मिल गया विराम
दिल को मिला सुकून, हुए सच स्वप्न तमाम
बाँध लिया है बिना डोर के, बंधन में तुमको ऐसे
राधा के संग श्याम का, जुड़ा हुआ हो जैसे नाम
तोड़ेंगे सब रिश्ते जग, के प्रीत ना तोड़ेंगे

थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे
ले जायेंगे उस पार तुम्हें, इस पार ना  छोड़ेंगे


एक नज़र ने कर दिया है, क्या कमाल देख लो
क्या जहां में इस तरह की, है मिसाल देख लो
प्यार का इस जहां पे, हो रहा है यूँ असर
जादूगर का जैसे कोई, हो कमाल देख लो
प्रीत की राहों से अपने, कदम ना मोड़ेंगे

थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे
ले जायेंगे उस पार तुम्हें, इस पार ना  छोड़ेंगे


तोड़ के जग के सारे नाते, एक दिन तो आना होगा
प्रीत का गीत मेरे संग मिलकर, एक दिन तो गाना होगा
एक दिन तो मेरे भी घर में, होगी प्यार की दीवाली
दो प्यासी रूहों को आखिर, एक दिन मिल जाना होगा
टूटे ना ये प्रीत, दिलों को, ऐसे जोड़ेंगे

थाम लिया है आँचल, अबकी बार ना छोड़ेंगे
ले जायेंगे उस पार तुम्हें, इस पार ना  छोड़ेंगे





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शनिवार, 21 नवंबर 2009

पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा

 प्रस्तुत है कई वर्ष पहले लिखी एक रचना. जो मुझ बहुत पसंद है , शायद आपको भी पसंद आये.

पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा


..
पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा , जब तक मेरे नगमे गीत
तब तक चैन नहीं पाऊंगा, मेरे रूठे बिछुड़े मीत
पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा तुम्हारा........................
.

जब तक मेरे गीत तुम्हें, मेरे द्वारे तक ना लायें
चारों और तुम्हारे , मेरे गीतों के होंगे  साए
एक दिन तो पहचानोगे तुम, एक पागल की पागल प्रीत
पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा तुम्हारा...........................

सपनों में भी गीत सुनाकर, तुम्हें नहीं सोने दूंगा
जनम जनम के साथी को क्या, ऐसे ही खोने दूंगा
हार के दिल आ जाओगे जब, होगी वही तुम्हारी जीत
पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा तुम्हारा............................

कृष्ण सरीखा आकर्षण  तो, नहीं है मुझमें, गीतों में,
राधा- सी आ जाओ पर तुम , क्या रक्खा है रीतों में
सपना हो जाएगा पूरा, गीतों का पाकर संगीत
पिघला दें ना ह्रदय तुम्हारा तुम्हारा............................

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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी

हँस के गुजार दी कभी रो के गुजार दी
जिंदगी हमने तेरे,होके गुजार दी

तुझको यकीन हो ना हो , लेकिन है सच यही
हमने तो अपनी जिंदगी तुझपर निसार दी

इश्क में तूफ़ान आना, लाज़मी, मालूम था
कश्ती समंदर में तिरे भरोसे उतार दी

चाँद तारों की तमन्ना की नहीं तेरे सिवा
किस्मत, हमारी याद भी, तूने बिसार दी

यूँ तो यकीन पर है ये दुनिया टिकी हुई
वापस यकीन टूट कर, पाई , उधार दी

मुजरिम हुआ हूँ जब से मैं इल्जाम-ए-इश्क का
दुनिया की थोडी लाज थी , वो भी उतार दी

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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

खोजता था अपना नाम .............

खोजता था अपना नाम उसके हाथों में कहीं
क्या लकीरें इश्क की , हाथ में होती नहीं हैं?

सोचता था स्वप्न में ही उससे मिल आऊं कभी
पर सुना है  वो दीवानी आज कल सोती नहीं है

अश्क बनकर बरस जाऊं उसकी आँखों से कभी
मेरी किस्मत, मौन है वो, आजकल रोती नहीं है

सीपियाँ तो खोज लाया मोतियों की चाह में
देख कर हैरां हूँ इनमें बूँद हैं मोती  नहीं है

मैं तो मिटना चाहता था एक पतंगे की तरह
उस शमा में मोम तो है ,ज्योत है, ज्योति नहीं है

मैंने कितने बीज खुशियों के दिए उसको मगर
क्यूँ दबा देती बरफ में , बीज, क्यूँ बोती नहीं है


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 मेरा http://swapnyogeshverma.blogspot.com/  ब्लॉग भी देखें.
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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

कुछ दोहे

जो अपनी औकात में रहकर करता बात
उसको सभ्य समाज की पड़े कभी ना लात

भूल गया निज वक़्त तू कुर्सी पा भरमाय
घूस खाए चोरी करे सबकी लेता हाय

तुझको लगता था बुरा, जो औरों का कर्म
वही कर्म अब तू करे , गई कहाँ तेरी शर्म

कुर्सी के बल कूदता , कहाँ गए संस्कार
 "केवल" कुर्सी छोड़कर ,पायेगा तिरस्कार

ये शतरंज का खेल है, खा जायेगा मात
सवा सेर है सेर को, गाँठ बाँध ले तात

रहे सुरक्षित वो सदा , झुका हुआ जो वृक्ष
तने हुए को काटना , है समाज का लक्ष्य

देने को कुछ है नहीं , बोल तो मीठे बोल
अरे  जाग अब त्याग दे , अंहकार का खोल
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कुछ दोहे लिखने की कोशिश की है कहाँ तक सफल हूँ , पता नहीं ,कुछ ख़ास नया भी नहीं दे पाया हूँ  पाठकों से विनम्र निवेदन है कमेंट्स  देते समय प्रशंसा करें ना  करें , कोई भी कमी  देखें ज़रूर बताएं,  मुझे उस कमी को दूर करने में सहायता मिलेगी, मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँगा. धन्यवाद.

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

जिंदगी में प्यार की...........

जिंदगी में प्यार की सबको ज़रुरत है
हर किसी के मन बसी एक खूब सूरत है

चल किसी मोहताज़ की कुछ मदद कर दें
मत घड़ी को देख ये अच्छा  मुहूरत है

हर बशर एक सा है मिटटी से बना एक
हर बशर में एक ही रब की तो मूरत है

मैं कहाँ हस्ती कहाँ मेरी जो बोलूं
रब के बारे में , कहाँ मेरी ये जुर्रत है?

जोड़ना गर चाहता है उससे नाता
दे सदा उसको अगर थोडी भी हसरत  है


http://swapnyogeshverma.blogspot.com/2009/10/blog-post_10.html  "तुम्हारे लिए" भी देखें.

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

कन्हैया को मैया बुलाय रही रे

लीजिये प्रस्तुत है "श्याम श्याम भजो" कैसेट से मेरा लिखा दूसरा भजन "कन्हैया को मैया बुलाय रही रे " इस पोस्ट के साथ इस भजन और पिछली १९.०५.२००९ की पोस्ट में प्रकाशित भजन "श्याम श्याम भजो" का ऑडियो /विडियो भी संलग्न/अटैच कर रहा हूँ. पढिये और सुनिए . और सुनकर बताइए आपको कैसे लगे दोनों भजन.

कन्हैया को मैया बुलाय रही रे
कन्हैया को मैया बुलाय रही रे
आजा तोहे माखन खिलाये देऊ रे ()

क्यूँ चोरी का माखन खाता -
गोपिन से मुझको सुनवाता -
चोर है तेरा कान्हा , क्यूँ दुनिया कहे
माखन से तुझको छकाये देऊ रे

कन्हैया को मैया बुलाय रही रे ..................

क्यूँ खोजे दूजे घर माखन-2
क्यूँ लगवाता खुद पर लांछन-2
घर में कितना भरा है रे माखन दही
माखन का पर्वत बने देऊ रे

कन्हैया को मैया..............................

जितना चाहे उतना खा ले-
माखन में मिश्री मिलवा ले -
राधा के घर तू जाता , क्यूँ रे बता
राधा को घर ही बुलाय देऊ रे

कन्हैया को मैया....................................http://www.youtube.com/watch?v=sF0qoNiDvmc

सोमवार, 14 सितंबर 2009

महफूज़ अब तो देश का, "साहिल" नहीं रहा

महफूज़ अब तो देश का,
"साहिल" नहीं रहा

लोगों का कत्ल-ए-आम अब 
"मुश्किल" नहीं रहा

कैदी बना के कुछ उसे 
"हासिल" नहीं रहा

कानून की पनाह में 
"कातिल" नहीं रहा

दामाद देश का वो (क)साब 
"जाहिल" नहीं रहा

आतंकियों का अंत क्यूँ 
"मंजिल" नहीं रहा.
******

शनिवार, 5 सितंबर 2009

आरती अफसर जी की

धार्मिक भावनाओं के वशीभूत एक और उपयोगी/ धार्मिक , कई वर्ष पहले लिखी रचना.

ॐ जय अफसर देवा, स्वामी जय अफसर देवा
तुम्हरे चमचे बनकर खाते सब मेवा,
ॐ जय अफसर देवा................

तुम्हरी नज़रें टेढी, सत्यानाश करें
दर दर पर भटकायें, भूख और प्यास हारें
ॐ जय अफसर देवा................

तुम्हरी कृपा मेरे स्वामी जिस पर हो जाए
वो आफिस में मस्ती से आए , जाए,
ॐ जय अफसर देवा................

एक हथियार तुम्हारी, बाल पेन ऐसी,
मिनटों में कर देती ऐसी की तैसी
ॐ जय अफसर देवा................

बड़े बड़े दिग्गज भी तुमसे भय खाते
हार मान कर तुम्हरे चरणों में आते
ॐ जय अफसर देवा................

बुद्धि को कभी अपनी, काम नहीं लाते
चुगलखोर की चुगली हंसकर अपनाते
ॐ जय अफसर देवा................

चमचों के गैंग में अपने मुझको भी डालो
शरण पड़ा प्रभु तुम्हरी, मुझको अपना लो
ॐ जय अफसर देवा................

चमचा बनते ही सब पाप मुक्त होते
जो न बन पाते वो जीवन भर रोते
ॐ जय अफसर देवा................

मेरी खताएं स्वामी , माफ़ सभी कर दो
मैं चमचा बन जाऊं , बस ऐसा वर दो
ॐ जय अफसर देवा................

ॐ जय अफसर देवा, स्वामी जय अफसर देवा
तुम्हरे चमचे बनकर खाते सब मेवा,
ॐ जय अफसर देवा................

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

ख्वाब और हकीकत का, मेल है दुनिया

ख्वाब और हकीकत का, मेल है दुनिया
खुदा का निराला ये, खेल है दुनिया

कोई रहा है , कोई जा रहा है
सभी हैं मुसाफिर, रेल है दुनिया

अगर जल रहा है ,दीपक तो समझो
है ज्योति उसी की,तेल है दुनिया

जो मुलजिम होते, कभी भी ना आते
हैं मुलजिम खुदा के, जेल है दुनिया.

कीमत यहाँ गिर गई, आदमी की
सस्ते में बिकता है ,सेल है दुनिया

वहीँ पर पड़ी है, ज़रूरत खुदा की
जहाँ कुछ भी पाने में, फ़ेल है दुनिया

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

अपने प्रेमी जन की सुध ले अब तो धीर बंधा जा रे (कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष।)

कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

(भगवन कृष्ण के गोकुल से मथुरा गमन के बाद का शब्द चित्र ।)

तेरे बाबा करे हैं याद तुझे अब तो मोहन घर आ जा रे
दिल से आंसू की धार बहे , अब तो गले लगा जा रे

सूना -सूना लगता गोकुल
जड़ चेतन सब हैं अति व्याकुल
सुध-बुध खो तेरी मैया कहे, चंदा-सा मुख दिखला जा रे
तेरे बाबा करे हैं..........................................................

भोजन में अब स्वाद नहीं है
तुझे किसी की याद नहीं है
माखन मिश्री करें प्रतीक्षा, आकर भोग लगा जा रे
तेरे बाबा करे हैं.......................................................

तेरी सब गैया रोती हैं
शुक मयूर सब मौन हो गए
ग्वाल बाल सब चीख रहे हैं, आकर गाय चारा जा रे
तेरे बाबा करे हैं......................................................

सभी गोपियाँ तड़प रही हैं
राधा बावरी भटक रही है
अपने प्रेमी जन की सुध ले , अब तो धीर बंधा जा रे
तेरे बाबा करे हैं........................................................
**********



स्वतंत्रता दिवस पर एक प्रश्न

देश प्रेमी हो तो बोलो देश की खातिर क्या दोगे?
रक्त के अतिरिक्त इस पर और क्या अर्पित करोगे?

दे सको तो मानसिक संकीर्णता दे दो
धर्म की नीवें हिलाती जीर्णता दे दो

जो अहिंसा को मिटाए क्रोध दे दो
सत्य को झुठलाये ऐसा बोध दे दो

कुटिल ह्रदय के सारे तुच्छ विचार दे दो
पाप को जो मूल भ्रष्टाचार दे दो

सौगंध लो ये सब नहीं देते डरोगे
देश प्रेमी हो तो बोलो देश की खातिर क्या दोगे?

देश प्रेमी हो तो बोलो देश की खातिर क्या दोगे?
रक्त के अतिरिक्त इस पर और क्या अर्पित करोगे?

********

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कौन हो तुम ?

एक जिज्ञासा ह्रदय में
आज उठ आई कहाँ से
कौन हो तुम?

मैं खोजा किया तुमको
स्वप्न में
कल्पना में
गीत में
प्रीत में
आह में
आल्हाद में
किंतु
भटका फिर रहा हूँ मौन
प्रश्न का उत्तर
नहीं मैं पा सका हूँ
कौन हो तुम ?

यह तो निश्चित है की तुम हो
पर कहाँ हो?

मेरा स्वर टकरा कर
मुझसे अचानक
आ गया मेरे ही पास
जब पुकारा मैंने तुम्हें
तब लगा जैसे हो तुम मेरे ही पास
वह स्वप्न था
सत्य की परिधि में बंधा सा
स्वप्न खंडित हो चुका था
इससे पहले कि,
मैं, यह पूछता
तुमसे

अचानक!

कौन हो तुम?

रविवार, 2 अगस्त 2009

अर्थ की ख्वाहिश ने क्या-क्या कर दिया

अर्थ की ख्वाहिश ने क्या-क्या कर दिया
दिल था एक मासूम पत्थर कर दिया

था गगन छूने का भी दम-ख़म मगर
जालिमों ने काट एक-एक पर दिया

प्यार कर बनने लगा जो देवता
उसके सीने में भी खंजर कर दिया

जो स्वपन देखा वही टुकड़े हुआ
आँख में अश्कों का निर्झर भर दिया

जिसकी  खातिर वो लड़ा, लड़ता रहा
 उसने ही साबित सितमगर कर दिया

थी डुबोने को बहुत एक लहर ही
ज्वार-भाटा और समंदर कर दिया

बागबां कैसे मिले उसको "स्वप्न"
खिल रहे गुलशन को बंज़र कर दिया


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मंगलवार, 28 जुलाई 2009

शोक (प्रार्थना)

मेरे पिताजी जो २८.०६.2008 से बीमार , अस्पताल में थे , का देहांत १३.०७.२००९ सोमवार को हो गया, उन्हें बचाने के सभी प्रयत्न विफल हुए, शायद यही ईश्वर की इच्छा थी.
एक प्रार्थना , मेरी छोटी बहिन सुनीता वर्मा द्वारा लिखित , जो अध्यापिका है।

ना हमारे पास स्वर ना शब्द के भण्डार हैं

ना हमारे पास स्वर ना शब्द के भण्डार हैं
गा रहे हैं जो ह्रदय के भाव हैं उदगार हैं

ना दिया बाती जला कर आरती को लाये हैं
नयन के दीपक में तेरी ज्योत के आधार हैं

फूल भी कोई नहीं चरणों में जो अर्पण करें
दो सुमन लाये हैं एक श्रद्धा है दूजा प्यार है

रूप गुण तेरे प्रभु हम गान कर सकते नहीं
नाम तेरे अनगिनत अनगिन तेरे आकार हैं

द्वार तेरा छोड़ कर किस ठौर जाएँ हम भला
एक तुम ही बंधु हो बैरी सकल संसार है

प्रार्थना ये है हमारी ज्ञान हमको दीजिये
निज शरण ले लीजिये प्रभुजी तो बेडा पार है.

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बुधवार, 1 जुलाई 2009

कौन है?

कौन है ईश्वर कभी जब सोचता हूँ
स्वयं से ही प्रश्न कितने पूछता हूँ

कौन है सृष्टि को रचता जा रहा है
कौन जो देहों में बसता रहा है

किसके आदेशों से पृथ्वी घूमती है
किसके डर से सूर्य तपता रहा है

कौन आंधी और तूफां को चलाता
ज्वालामुखी पर्वत को जो पिघला रहा है

कौन सुनता है ह्रदय की चीत्कारें
अपने भक्तों पर कृपा बरसा रहा है

रविवार, 14 जून 2009

मेरे श्याम..........

बहुत हो चुकी आँख मिचौनी , दूरी आज मिटाओ श्याम
मुझसे आकर मिलो यहाँ या, मुझको पास बुलाओ श्याम
मेरे श्याम, मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम,मेरे श्याम

दूर -दूर रहते रहते तो दूरी बढती जाती है
तुम तो आते नहीं तुम्हारी,यादें बहुत सताती है
दिव्य नेत्र दे दो आँखों से पर्दा ज़रा हटाओ श्याम
मेरे श्याम.........................................................

दूर बज रही वंशी की धुन मुझको पास बुलाती है
कभी सुनाई देती मुझको और कभी खो जाती है
आओ मेरे निकट बैठ कर वंशी आज बजाओ श्याम
मेरे श्याम......................................................

भव सागर में भटक-२ कर देखा सब कुछ झूठा है
मोहन तेरी शरण में सुख है, सुख का सपना टूटा है
कृपा करो मुझपर भी अब तो अपनी शरण लगाओ श्याम
मेरे श्याम.....................................................

मेरी तो अभिलाषा मोहन अब तुम में मिल जाना है
थका -थका नदिया का जल हूँ, सागर आज समाना है
सागर में मिलने दो मुझको , "मैं" को आज मिटाओ श्याम
मेरे श्याम...................................................

रविवार, 7 जून 2009

"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा दुनिया में

अभी ०५-०६-२००९ को बेटे के कॉलेज से सम्बंधित किसी कार्य वश जयपुर जाने का अवसर मिला. शाम को एक मंदिर में गए भीड़ भाड़ के बीच एक शख्स जो सीनियर सिटिज़न थे लगभग ६५-७० वर्ष के, एक कार के पास खड़े कार वाले से कुछ बात कर रहे थे, कुछ क्षणों में कार मालिक ने कुछ रूपये उन्हें दिए और वो एक तरफ हो गए,स्पष्ट रूप से भीख ही थी क्यूंकि दो तीन लोगों से इसी तरह भीख मांगी थी, वे सज्जन किसी भले परिवार से लग रहे थे, मुझसे रहा न गया , क्षमा मांगते हुए उनसे पूछ बैठा उन्होंने अश्रु भरे नेत्रों से जो जवाब मुझे दिए, उन सभी को कविता/गीत के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है कहाँ तक सफल रहा हूँ ये तो आप ही देखें, मेरी उनसे क्या बात हुई होगी आप स्वयं समझ जायेंगे सच मानिए ये उन्ही सज्जन के विचार हैं, मैंने बस कविता में ढाल दिए हैं.

"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा ,दुनिया में.

भीख मांग कर करो गुज़ारा दुनिया में
अगर तुम्हारा नहीं सहारा दुनिया में

पेट तो मांगेगा ही उसकी गलती क्या
इस दुनिया में सदा किसी की चलती क्या
शर्म-ओ-हया से करो किनारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................

किस्मत ऐसा समय, दिखाती जीवन में
कभी महल में वास, कभी होता वन में
कभी बादशाह,कभी बेचारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................

दूध निकलता नहीं , गाय के, जब थन से
त्यागा करता ग्वाला , उसको तन मन से
कूड़ा घर फिर बने, सहारा दुनिया में
भीख मांग कर करो.............................

बोए थे जो फूल समझकर, कांटे थे
सहन किये जो प्यार समझकर, चाँटे थे
"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा दुनिया में
भीख मांग कर करो...............................

संयोग देखिये ०६-०६-२००९ को जयपुर के एक प्रमुख समाचार पत्र के मुख प्रष्ठ पर संलग्न सन्देश प्रकाशित हुआ मैं उस सन्देश की कट्टिंग ले आया परन्तु समाचार पत्र का नाम लिखना भूल गया.( जयपुर के किन्ही पाठक को यदि उपरोक्त समाचार पत्र का नाम पता हो तो बताएं, मैं इसमें नाम स्पष्ट कर दूंगा) मैंने उसकी प्रति यहाँ दिखने की कोशिश की है.
मेरा इ मेल. yogesgverma56@gmail.com

मंगलवार, 2 जून 2009

एक गीत अपने देश के लिए

अब तो अपने भारत का भी , दुनिया लोहा मान रही है
नई नज़र से नए सिरे से , भारत को पहचान रही है


लाखों दाग चाँद में लेकिन, चाँद अभी भी क्यूँ भाता है
सबको ललक उसे पाने की, हर कोई क्यूँ अपनाता है
ऐसी हस्ती, ऐसी शक्ति, अब सबका अरमान रही है

अब तो अपने भारत का..........................................

देता आया अब तक सब को, अब भी देना है जारी
भारत से भारत-रस लेना , दुनिया की है लाचारी
गुरु था वो, गुरुतम अब होगा, भारत की जो शान रही है

अब तो अपने भारत का........................................

अब सम्रद्ध देश है अपना, नित नूतन हैं अभिलाषा
आसमान छू लेगा एक दिन, हमको है पूरी आशा
भारत माता सोने की, चिडिया बनने की ठान रही है।

अब तो अपने भारत का ......................................

शुक्रवार, 29 मई 2009

कौन कहता है मैं कहता हूँ ग़ज़ल

कौन कहता है मैं कहता हूँ ग़ज़ल
मुझको लगता है ये शब्दों का puzzle

तुमको लगता होगा मुश्किल काम ये
मुझसे गर पूछो तो है बिलकुल सरल

गीत कविता और ग़ज़ल सब एक हैं
दिल अगर श्रोता का जाता है बहल

दर्द का रिश्ता अजब है शायरी से
उम्दा शायर वो जो पीता हो गरल

शायरी जो, झनझना दे दिल के तार
जिसको सुनकर आँख हो जाए सजल

दर्द और आंसू की वर्षा में पकी
मौसमी होती नहीं इसकी फसल

दिल कभी जब प्यार से लबरेज हो
तो बिना मौसम खिले कविता-कमल

जब कभी लिखता हो कुछ कोई कवि
पाप होगा तुमने गर डाला खलल

है दखल इसमें "अकलमंदों" का भी
दूसरों की शायरी करते नक़ल

ये तसव्वुर की करामातें हैं "स्वप्न"
बस ख्यालों में ही बन जाता महल

शुक्रवार, 15 मई 2009

कहाँ जा रहा देश.....................

कहाँ जा रहा देश

कहाँ जा रहा देश, देखो, कहाँ जा रहा देश
कहाँ जा रहा देश, अपना कहाँ जा रहा देश

चारों ओर मची है देखो , बस पैसे की लूट
चोर लुटेरे ऐश कर रहे, डाल-डाल कर फूट
दूर -दूर तक देखा हमने , देखा भ्रष्टाचार
जो ना भ्रष्टाचार करे, सो लगता है बीमार
डाकू राजा बन बैठे, कर जनता को कंगाल
मिटा रहे अपनी निर्धनता,होकर मालामाल
दुश्चरित्र लोभी पाखंडी, देते हैं उपदेश
भारत माता बिलख रही है, आज खोलकर केश
कहाँ जा रहा देश...........................


नए रूप में आते देखो , परदेसी व्यापारी
मजदूरों को हटा कर रहे बंद फैक्ट्री सारी
वातावरण हुआ है दूषित, पेट्रोल डीजल से
सांस हो गया लेना दूभर, पानी गायब नल से
भूल चुके हैं गुरुजनों का आदर करना बालक
आचार-संहिता बना रहे, आचार-हीन संचालक
केबल टी वी और सिनेमा करते हैं जो पेश
भोंडेपन को देख हो गए, व्यर्थ सभी सन्देश
कहाँ जा रहा देश..................................

भक्ति भजन भूल कर भोगी कामी हुआ समाज
कैसा नया ज़माना, मिटते जाते रीत-रिवाज़
कहो राम से , जाकर देखो, आया वही ज़माना
हंस चुग रहा दाना तिनका,मोती कौवा काना
प्रेम प्यार की बातें अब, लगती हैं बेमानी
गावों में भी पहुँच चुका है , गन्दला शहरी पानी
अब तो सोचो अब तो समझो, जगा रहा योगेश
ऐसा चलता रहा तो कुछ भी नहीं रहेगा शेष
कहाँ जा रहा देश.....................................

कुंठा और तनावों में क्यूँ काट रहे जीवन
आग विदेशी जला ना जाए ये अपना मधुवन
खुद को जांचो खुद को परखो,खुद में करो सुधार
देश स्वयं ही सुधर जायेगा, सुधरा गर आधार
पहचानों जो ख़त्म कर रहे आज तुम्हारी दौलत
चुन-चुन उनको ख़त्म करो, बिना दिए कुछ मोहलत
जरा मुखौटे उठा के देखो, उनका रूप विशेष
बैठे हैं गद्दार देश में, बदल बदल कर वेश
कहाँ जा रहा देश..........................................


क्यूँ कायर से बन बैठे हो, होकर यूँ लाचार
करने से भी बुरा है बंधू , सहना अत्याचार
गीता को है चिंता भारी, है कुरान हैरान
धर्म करम को छोड़ बना है इन्सां क्यूँ हैवान
गैरों से भी ज्यादा कुछ, अपनों ने की बर्बादी
हाय! कहीं फिर खो ना जाए, ये अपनी आजादी
नेताओं के घर मिलता है, अरबों रुपया कैश
गांधी, नेहरु, नेताजी -सा कोई रहा ना शेष
कहाँ जा रहा देश.................................

अल्लाह, ईश्वर, आसमान से देख रहे हैं ऐसे
जो उनका भारत था , भारत देश नहीं वो जैसे
एक जहन्नुम बना दिया भारत को भ्रष्टाचार ने
सोने की चिडिया माना था, कभी जिसे संसार ने
कहाँ गए वो गुरु, सत्य की राह हमें जो दिखा गए
कहाँ गए वो गुरु शिष्य को , जो गोविन्द से मिला गए
दिखा गए हैं दिशा हमें जो संत और दरवेश
उसी पे चल होगा महान फिर अपना "भारत" देश
कहाँ जा रहा...


यह रचना कई(4-) वर्ष पहले लिखी थी , हो सकता है इसके कुछ अंश प्रासंगिक/सामयिक हों . जो भी है कविता आपके सामने है. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षाहोगी.

शुक्रवार, 8 मई 2009

किस्मत मेहरबान हुई आप आए

किस्मत मेहरबां हुई आप आये
मचलते हैं तूफां कई आप आये

वो तरसा किये जिनको दीवार--दर भी
वो, जिनके बिना घर था , कोई घर भी
बने आज मेहमां, वही , आप आये
किस्मत.......................................

ग़मों की वो बदली नहीं छंट रही थी
वो, तन्हाई काटे नहीं कट रही थी
की अब हम हैं तन्हा, नहीं, आप आये
किस्मत......................................

वो कैसी अगन थी जले जिसमें दोनों
वो कैसी कशिश थी पले जिसमें दोनों
लुटा जिसमें , ईमां, सही आप आये
किस्मत.....................................

आदर करूंगा , खुशामद नहीं.........

आदर करूंगा , खुशामद नहीं
अभी इतना छोटा, मेरा कद नहीं

जो सर को झुका दे मेरा, रौब से
अभी इतना ऊंचा, तेरा पद नहीं

अभी तक तो कायम है, ईमां मेरा
भले तू हो कोई, मैं हर्षद नहीं

तेरी ही दया के, सहारे जियूं
नहीं मैं लता, तू भी बरगद नहीं

मैं उसका सनेही, जो मदहीन है
है जिसकी कृपा की, कोई हद नहीं

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

सोच रहा हूँ....

एक बार फिर आप सभी का जो मेरी रचनाएँ पढ़ते हैं/सराहते हैं और मुझे नया लिखने के लिए अपनी टिप्पणी द्वारा प्रेरित करते हैं, हार्दिक धन्यवाद.प्रस्तुत है एक गीत पुरानी डायरी से. आशा है आप पसंद करेंगे।

सोच रहा हूँ ऐसा कोई गीत बनाऊं

जिसको सुन तुम रुक ना पाओ आ जाओ

ऐसा कोई गीत ह्रदय से फूटा हो

लगता हो ज्यों ह्रदय किसी का टूटा हो

किसी चोर ने प्यार किसी का लूटा हो

बिना वजह या कोई किसी से रूठा हो

सोच रहा हूँ................................


ऐसा कोई गीत प्यार से सराबोर हो

खींच लाये जो तुमको लेकिन बिना डोर हो

जग की सारी प्रेम सुधा का जो निचोड़ हो

मेरे अनुरागी जीवन का नया मोड़ हो

सोच रहा हूँ.................................


ऐसा कोई गीत आज तक बना न हो

जिसको सुन आंसू का दरिया थमा ना हो

साया बन कर साथ चले तुम तनहा न हो

भूल पाओ तुम ऐसा कोई लम्हा न हो

सोच रहा हूँ....................................

योगेश स्वप्न


गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

भोली सूरत वाले ...............

भोली सूरत वाले चेहरे छुपे हुए रुस्तम निकले
चिंगारी जिनको समझे हम वो तो पूरे बम निकले

ग़ज़ल कहो या शायरी या कविता या हंसगुल्ले
प्रेम सुधा के पीने वाले वो मेरे हमदम निकले

जब तक तार छेड़े थे सागर में खामोशी थी
एक एक तार को छेड़ा तो लहरों के सरगम निकले

कोरा कागज़ लगती थी जो किताब पहले पहले
खोल के उसको देखा तो भरे हुए कालम निकले

आए भी वो गए भी वो इन थोड़े से लम्हों में
नयन विदा करने वालों के देखा तो पुरनम निकले


योगेश स्वप्न

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

"भावी" और "गीत दूत"

आज हमारे वैवाहिक जीवन के पच्चीस सुखद वर्ष पूरे हुए.यानि सिल्वर जुबली हो गई विवाह से पहले की कुछ यादें ताज़ा हो गईं आज की रचना "भावी" ०६.०४.१९७५ को लिखी एक कविता , जब मैं कॉलेज में पढता था , अविवाहित था , प्रस्तुत कर रहा हूँ साथ ही एक नज़म भी हैं "गीत दूत" शीर्षक से ,ये भी १९७५-८० के मध्य की है.१९-२० वर्षीया युवा कवि की तात्कालीन भावनाएं. आशा करता हूँ आपको पसंद आएँगी.

"भावी"

स्वप्न लोक की परी
तुम्हारी छवि
मेरे ह्रदय दर्पण में

भावी हृदयेश्वरी
छिपाए हुए
तुम्हारा कवि
तुम्हें निज अंतर्मन में

अनजान पौध की कली
लगो तुम भली
बिना देखे जीवन में

खोज रहा कली
तुम्हारा अली
तुम्हें हर वन मधुवन में

मिल जाओ मौन
देख मैं कौन
इच्छुक तेरे दर्शन का

निकल के चित्र
प्रकट , बन मित्र
तोड़ दे आज
चौखटा इस दर्पण का.

"गीत दूत"

मेरे उर के कोमल भावों
तुम गीत रूप में परिणत हो
जन-जन के मुख से मुखरित हो
मेरा संदेश-
मेरी प्रेयसी तक पहुँचा दो

मैं कमल क्रोड़ में बंद मधुप-सा
वह हरियाली में बंद कली
दोनों प्रतीक्षा-रत ,
कब आएगा प्यारा बसंत
कब आएगी वह ऋतु भली
जब मैं गुन-गुन करता , चहुँ ओर
उन अधरों का रस पान करूंगा

किंतु ज्ञात नहीं यह मुझको
वह किस बगिया की कोमल कलिका
और उसे भी ज्ञात नहीं है
कौन देश का उसका प्रीतम
किस दिशी से उसको आना है

, गीतों ! ले वंशी की धुन
अनदेखी राधा से कहना
कोई तुम्हें पुकार रहा है
तुम तक आने को गुहार रहा है

जब प्रातः वेला में वह जाती होगी
शिव को अर्ध्य-दान करने
या तुलसी को जल देने का
नियम बनाया होगा
तो, मन में, प्रीतम से मिलने का
वर पाने की
उद्दीप्त कामना होगी

संजोई होंगी उसने भी कुछ अभिलाषाएं
उसने भी बनाई होंगी नयनों की भाषाएँ
स्वप्न में उसने प्रीतम का
आलिंगन पाया होगा
और स्वप्न टूट जाने पर
बहुत दुखी हो
उसने आंखों में रात बिताई होगी

मेरे गीतों! तुम्हारा स्वर सुन
जब उसका तन कम्पित होगा
उसकी उर लहरें मचलेंगी जब
किनारा पाने को
तब, वह पूछेगी तुमसे
तुम्हें किसने भेजा है?
कहाँ से लाये हो मधुर भावः,
मधु-कलश कहाँ सहेजा है?

तब निसंकोच बताना
दूर देश से लाये हैं
विरही का संदेसा
कोमल केशा
वह, विरह वेदना से व्याकुल है
कमल क्रोड़ को छोड़
तुम्हें पाने आएगा
फिर तुम घूंघट से अपना
शशि-मुख दिखलाना
आलिंगन में बंध
अधर-सुधा-रस
पान कराना


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