कहता है दिल करे यूँ शिकायत कभी कभी
कहता है दिल करे यूँ,शिकायत कभी कभी
उसमें भी हो छिपी-सी,मुहब्बत कभी कभी
हो प्यार में अगरचे ,अदावत कभी कभी
उस पर भी हम करें एक ,दावत कभी कभी
इन्सां पे रब की हो यूँ, इनायत कभी कभी
पहुंचे जो रूह तक भी ,राहत कभी कभी
बन्दों की ऐसे लाजिम ,हिमायत कभी कभी
मज़हब की तोड़ दें जो ,रवायत कभी कभी
हो जिक्र गर खुदा की, बाबत कभी कभी
तो मानें कृष्ण की भी ,हकीकत कभी कभी
कुरआन की पढ़ें यूँ ,आयत कभी कभी
गीता ज्यों बाँचने की, चाहत कभी कभी
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आज अभी कुछ देर पहले समीर जी (उड़न तश्तरी) के ब्लॉग पर था उनके लैपटॉप को श्रधांजलि देने के बाद कुछ दिन पहले लिखी अपनी ये पंक्तियाँ याद आ गईं सो आज बड़ा दिन भी है एक के साथ एक फ्री
नहीं चाहते हुए भी सब कुछ सहना पड़ता है
नहीं चाहते हुए भी सब कुछ सहना पड़ता है
सुख में दुःख में इस दुनिया में रहना पड़ता है
प्यार अगर है तो मुख से भी कहना पड़ता है
रीत-रिवाजों की धारा में बहना पड़ता है
कितना भी हो प्यारा रिश्ता ,चट्टानों-सा दुनिया में
एक रोज़ निश्चित उसको भी ढहना पड़ता है
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