महफूज़ अब तो देश का,
"साहिल" नहीं रहा
लोगों का कत्ल-ए-आम अब
"मुश्किल" नहीं रहा
कैदी बना के कुछ उसे
"हासिल" नहीं रहा
कानून की पनाह में
"कातिल" नहीं रहा
दामाद देश का वो (क)साब
"जाहिल" नहीं रहा
आतंकियों का अंत क्यूँ
"मंजिल" नहीं रहा.
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