उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

क्या मिलना है उनसे जाकर................

क्या मिलना है उनसे जाकर
जिनके मन में प्यार नहीं
बेशक लक्ष्मी बरस रही हो
पर आदर सत्कार नहीं

चेहरे पर हों लगे मुखौटे
मन में कटुता भरी हुई
क्यूँ जाएँ हम उनसे मिलने
इतने तो लाचार नहीं

करें दिखावा अपनेपन का
अलग दिखाने, खाने, के
ऐसे स्वार्थ परक लोगों का
अच्छा हो दीदार नहीं

नफरत नहीं हमें है उनसे
हाँ बेशक है प्यार नहीं
दूर दूर की "राम" भली है
करते हम तकरार नहीं

पाला पोसा "अहम्" ने उनको
और पैसे ने "बड़ा" किया
वो वाणी किस काम की जिससे
बहे प्रीत की धार नहीं.
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बुधवार, 1 अप्रैल 2009

वो भंवर है..............

पिछली पोस्ट पर जिन महानुभावों /कवियों ने टिप्पणियाँ दीं और मेरी रचना को सराहा उन सभी का हार्दिक धन्यवाद, आप से आशा है ऐसे ही मेरा उत्साह-वर्धन करते रहेंगे, पुनः धन्यवाद सहित प्रस्तुत है एक नई
अर्थात २७.०३.२००९ को लिखी रचना। आपका स्वागत है.


मासूम एक चेहरा मेरा, कातिल बना है
मजबूर हूँ मैं, वो मेरी ,मंजिल बना है

है कौन सा रिश्ता मेरा, उससे ना जाने
गए हैं मेरे, होठों पर तराने
मकसद मेरा करना उसे, हासिल बना है
मासूम एक चेहरा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

वो मुझे घायल, किए जाता है ऐसे
जैसे आरी से कोई, लकड़ी तराशे
अब जुदा होना मेरी, मुश्किल बना है
मासूम एक चेहरा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

बात दिल की है, वो दिलबर जानता है
दिल की हर धड़कन को ,वो पहचानता है
दिल चुरा कर वो मेरा, बेदिल बना है
मासूम सा चेहरा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक कशिश सी उसकी, है तीर_-नज़र में
एक खलिश सी है मेरे दिल--जिगर में
वो भंवर है पर , मेरा साहिल बना है
मासूम एक चेहरा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सोमवार, 30 मार्च 2009

चिंगारी ही एक दिन ज्वाला बनती है.

एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ , जो २६.०२.२००९ को लिखी थी, किसी परिस्थिति को देख कर कुछ क्रोध गया था , वही क्रोध प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में परिवर्तित हो गयादेखें आपको कैसी लगती है, मेरे क्रोध से उपजी ये रचना



चिंगारी ही एक दिन ज्वाला बनती है
बूँद-बूँद ही बनकर नदी उफनती है
इस दुनिया में किसी को छोटा ना समझो
चींटी भी हाथी को भारी पड़ती है
चिंगारी ही एक दिन ..............................


इस निष्ठुर ह्रदय में थोडी दया भरो
अगर बड़े हो तो छोटों को क्षमा करो
आह की अग्नि तुम्हें एक दिन खायेगी
आह से तो भारी इस्पात पिघलती है
चिंगारी ही एक दिन ..............................


देख रहा "वो" सब कुछ उससे डरो जरा
शर्म अगर आती हो थोडी करो जरा
ऊँट पहाड़ के नीचे एक दिन आएगा
दुनिया में ना सदा किसी की चलती है
चिंगारी ही एक दिन ..............................

अपने से छोटों का शोषण करने को
अपने अंहकार का पोषण करने को
सहनशीलता धरती की मत ललकारो
धरती भी गुस्से में आग उगलती है
चिंगारी ही एक दिन ..............................