उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

गीत को पंख लग गए होते



गीत को पंख लग गए होते
तुम जो एक बार गुनगुना जाते

तुमको आना था सदा पे अगर
एक उम्मीद तो जगा जाते

यूँ अंधेरों में छोड़ जाना था
एक दीपक कहीं जला जाते

ख्वाब में के ही कभी मिलते
एक पल तो हमें सुला जाते

अश्क भी आँख से जुदा हुए
काश जाते हुए रुला जाते

देना था गर ज़हर जुदाई का
अपने हाथों से तो पिला जाते

जो किया तुमने गरचे हम करते
मेरा दावा है तिलमिला जाते







गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

कभी इनकार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में

मिसरा--तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर श्री सतपाल ख्याल और द्विज जी द्वारा आयोजित मुशायरे में एक छोटा सा योगदान इस खाकसार का भी कुबूल किया गया, मुशायरा काफी सफल रहा , जिसमें २५ से अधिक शायरों ने भाग लिया , लाजवाब रचनाएँ पढने को मिलीं मैं आयोजकों को धन्यवाद देता हूँ और मेरी जिस अदना सी रचना को सम्मान दिया गया आपके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़माना गया ऐसा , करो अब प्यार चुटकी में

हुई जब बात फ़िल्मों की, दिखाने की तो बेगम-सा
हुई तैयार चुटकी में, किया सिंगार चुटकी में

जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में

है उनकी आँख का जलवा , या साँसों का है ये जादू
कि चंगे हो गए देखो सभी बीमार चुटकी में

ग़ज़ल कहते थे कल तक कोई नज़्म लिखते थे
बनाया ब्लॉग चुटकी में, बने फ़नकार चुटकी में

असर है टिप्पणी का हम वगरना थे कहाँ काबिल
कलम ली हाथ चुटकी में , ग़ज़ल तैयार चुटकी में






सतपाल जी का आभारी हूँ जिन्होंने इसे सँवारने में योगदान किया, और मुझे ये मानने में भी कोई झिझक नहीं है, की ग़ज़ल के नियमों आदि की जानकारी मुझे के बराबर है.

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

आज महफिल में कोई...............

आज महफिल में कोई शम्मा फरोजां होगी
कोई इश्क में झुलसेगा, कहीं पिघलती जाँ होगी

चली कली परदेस छोड़ बाबुल का गाँव
कोई आँगन सूना होगा, कहीं खुशियाँ होंगी

किसको अपना कहे , सुनाये हाल--दिल
अपने तो सब छूट गए, अपने घर तन्हां होगी

आज उठेगा किसी का घूंघट , पहली बार
दिल तो मचल रहा होगा, मगर लबों पर ना होगी

अपने मधुकर को पाकर, होगी आज निहाल
कोई दूरी आज नहीं दो जिस्मों के दरम्यां होगी

सृष्टि चक्र चलाने को, मिल जायेंगे हृदय पुनीत
नई कोपलें फूटेंगी फिर, धरती क्यूँ वीरां होगी