खोजता था अपना नाम उसके हाथों में कहीं
क्या लकीरें इश्क की , हाथ में होती नहीं हैं?
सोचता था स्वप्न में ही उससे मिल आऊं कभी
पर सुना है वो दीवानी आज कल सोती नहीं है
अश्क बनकर बरस जाऊं उसकी आँखों से कभी
मेरी किस्मत, मौन है वो, आजकल रोती नहीं है
सीपियाँ तो खोज लाया मोतियों की चाह में
देख कर हैरां हूँ इनमें बूँद हैं मोती नहीं है
मैं तो मिटना चाहता था एक पतंगे की तरह
उस शमा में मोम तो है ,ज्योत है, ज्योति नहीं है
मैंने कितने बीज खुशियों के दिए उसको मगर
क्यूँ दबा देती बरफ में , बीज, क्यूँ बोती नहीं है
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मेरा http://swapnyogeshverma.blogspot.com/ ब्लॉग भी देखें.
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