उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

मज़ा कुछ और है

चलिए ब्लॉग के दूसरे वर्ष कि  शुरुआत करते हैं आजही लिखी इस रचना से. आज  अरहर कि दाल और चावल खाने कि इच्छा हुई  सुबह सुबह पत्नी से कविता में इसकी मांग कर बैठे , मांग क्या कर बैठे  मुखड़ा भा गया और इस रचना ने पदार्पण किया , गौर फरमाएं.

मज़ा कुछ और है 


अरहर कि दाल, चावल , और संग हो मांडिया
साथ हो चटनी पुदीने की, मज़ा कुछ और है

उच्च कुल की हो , गुणी हो , सभ्य हो
पत्नी हो शिक्षित नगीने -सी , मज़ा कुछ और है

बाप हो सूफी , हो शादी पूत की
और करे वो बात पीने की, मज़ा कुछ और है

एक दिन महीने में वेतन क्या मज़ा
हर तिथि , वेतन, महीने की, मज़ा कुछ और है

ईंट और रोड़ा , कहीं का जोड़ कर
कोशिशें हों जब , करीने की, मज़ा कुछ और है

रोग हो घातक , खड़ी  सिर मौत हो
और हो फिर बात, जीने की, मज़ा कुछ और है

हो शहादत देश की खातिर अगर
और निशानी, ज़ख्म, सीने की, मज़ा कुछ और है

प्यार हो सबसे , खुदा का नाम हो
सैर, फिर मक्का-मदीने की, मज़ा कुछ और है

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