उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

रविवार, 7 जून 2009

"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा दुनिया में

अभी ०५-०६-२००९ को बेटे के कॉलेज से सम्बंधित किसी कार्य वश जयपुर जाने का अवसर मिला. शाम को एक मंदिर में गए भीड़ भाड़ के बीच एक शख्स जो सीनियर सिटिज़न थे लगभग ६५-७० वर्ष के, एक कार के पास खड़े कार वाले से कुछ बात कर रहे थे, कुछ क्षणों में कार मालिक ने कुछ रूपये उन्हें दिए और वो एक तरफ हो गए,स्पष्ट रूप से भीख ही थी क्यूंकि दो तीन लोगों से इसी तरह भीख मांगी थी, वे सज्जन किसी भले परिवार से लग रहे थे, मुझसे रहा न गया , क्षमा मांगते हुए उनसे पूछ बैठा उन्होंने अश्रु भरे नेत्रों से जो जवाब मुझे दिए, उन सभी को कविता/गीत के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है कहाँ तक सफल रहा हूँ ये तो आप ही देखें, मेरी उनसे क्या बात हुई होगी आप स्वयं समझ जायेंगे सच मानिए ये उन्ही सज्जन के विचार हैं, मैंने बस कविता में ढाल दिए हैं.

"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा ,दुनिया में.

भीख मांग कर करो गुज़ारा दुनिया में
अगर तुम्हारा नहीं सहारा दुनिया में

पेट तो मांगेगा ही उसकी गलती क्या
इस दुनिया में सदा किसी की चलती क्या
शर्म-ओ-हया से करो किनारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................

किस्मत ऐसा समय, दिखाती जीवन में
कभी महल में वास, कभी होता वन में
कभी बादशाह,कभी बेचारा दुनिया में
भीख मांग कर करो..............................

दूध निकलता नहीं , गाय के, जब थन से
त्यागा करता ग्वाला , उसको तन मन से
कूड़ा घर फिर बने, सहारा दुनिया में
भीख मांग कर करो.............................

बोए थे जो फूल समझकर, कांटे थे
सहन किये जो प्यार समझकर, चाँटे थे
"स्वप्न" कोई ना हुआ हमारा दुनिया में
भीख मांग कर करो...............................

संयोग देखिये ०६-०६-२००९ को जयपुर के एक प्रमुख समाचार पत्र के मुख प्रष्ठ पर संलग्न सन्देश प्रकाशित हुआ मैं उस सन्देश की कट्टिंग ले आया परन्तु समाचार पत्र का नाम लिखना भूल गया.( जयपुर के किन्ही पाठक को यदि उपरोक्त समाचार पत्र का नाम पता हो तो बताएं, मैं इसमें नाम स्पष्ट कर दूंगा) मैंने उसकी प्रति यहाँ दिखने की कोशिश की है.
मेरा इ मेल. yogesgverma56@gmail.com