उपरोक्त शीर्षक चित्र श्री श्री राधा श्याम सुंदर , इस्कान मंदिर वृन्दावन, तिथि 15.04.2010 के दर्शन (vrindavan darshan से साभार ).

शनिवार, 3 जनवरी 2009

"मैं"

मैं
तो , सिर्फ़ खामोशी हूँ
शून्य से चलकर
शून्य की ओंर
बढती खामोशी
प्रकाश से चलकर
प्रकाश की ओर
बढती खामोशी
मन, बुध्धि ,
इन्द्रियों से परे
हवा के साथ -२
बहती खामोशी
अनंत के गहनतम
स्थल में छिपी खामोशी
प्रेमी के ह्रदय में छिपी
तड़पती खामोशी
ब्रह्म रंध्र से निकल
ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त
खामोशी
कहीं परमाणु में सिमटी
और कहीं
विराट से विराट तर
होती खामोशी
यानि
"मैं"
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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

तड़प -२ के गा रहा है................

तड़प-२ के गा रहा है, गीत कोई प्यार के
क्यूँ खिजां को आ रहे हैं याद दिन बहार के

खुशबुओं को ले गया कोई चमन उजाड़ के
जी रहा है आज कोई अपने मन को मार के
तड़प..................................................

चल पड़े हैं साथ कई काफिले उधर के
बस वही नहीं है जिसको हो सुकून निहार के
तड़प...............................................

क्या बचा है जिंदगी में जिंदगी गुज़र के
एक बार देख जाओ बस कफ़न उतर के
तड़प.................................................

"स्वप्न" टूट -२ कर इस कदर बिखर गया
जैसे पारा फ़ैल जाए फर्श पर बुखार के
तड़प.................................................

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सोमवार, 29 दिसंबर 2008

अब तो बेहतर है................

अब तो बेहतर है हमें तुम भूल जाओ
न कभी लब पर हमारा नाम लाओ
अब तो ...........................................

टूटे स्वप्नों का महल खंडहर हुआ
हार बैठे हम ये जीवन का जुआ
सारे गम दे दो हमें खुशियाँ मनाओ
अब तो ..........................................

वो पुराने दिन न लौटेंगे दुबारा
वो गली वो छत वो पीपल वो चौबारा
लूट कर मुझको लो अपना घर सजाओ
अब तो.............................................

जिंदगी सारी गुजारी है विरह में
याद के नश्तर से चुभते हैं ह्रदय में
अब न ज़ख्मों पर मेरे मरहम लगाओ
अब तो.............................................

रविवार, 28 दिसंबर 2008

दर्द ने जब खटखटाया .......................

दर्द ने जब खटखटाया दिल का द्वार
एक नया नगमा बना कर सो गया

जब कभी पूछा किसी ने कौन थी
"स्वप्न" का किस्सा सुना कर सो गया

नींद जब आंखों से गायब हो गई
गीत अपना गुन गुना कर सो गाया

याद जब उसकी अचानक आ गई
प्यास होठों की बुझा का सो गया

जब शुरू उसने किए शिकवे गिले
मुस्कुराया मुस्कुरा कर सो गया।

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एक नाम

ताउम्र मेरे ज़हन में आता रहा एक नाम
हर नज़्म हर एक गीत में गाता रहा एक नाम

दे दे के सदा मुझको बुलाता रहा एक नाम
पीड़ा से मुझको अपनी रुलाता रहा एक नाम

आंसुओं से देख लो ये भर गया दामन
खैरात खुले हाथ लुटाता रहा एक नाम

मजबूरियां थीं कोई जाना पड़ा विदेश
राधा-सा , फिर भी साथ निभाता रहा एक नाम
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