खता, हमसे ही हो गई होगी
वरना वो दूर क्यूँ गए होते
पीर आंखों ने कुछ सही होगी
वरना यूँ अश्क क्यूँ बहे होते
दिल में उनके अगर जगह मिलती
चैन से हम भी रह रहे होते
साथ अपनों का मिल गया होता
आज अपने भी कहकहे होते
बात गर खोलते ना हम उनसे
दिलके जज्बात अनकहे होते
स्वप्न सच्चे जो हो गए होते
दर्द हमने न यूँ सहे होते
उनकी यादों ने कुछ उबारा है
वरना हम कब के मर गए होते
हमपे दीवानगी जो छा जाती
अच्छे अशआर कुछ कहे होते
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वरना वो दूर क्यूँ गए होते
पीर आंखों ने कुछ सही होगी
वरना यूँ अश्क क्यूँ बहे होते
दिल में उनके अगर जगह मिलती
चैन से हम भी रह रहे होते
साथ अपनों का मिल गया होता
आज अपने भी कहकहे होते
बात गर खोलते ना हम उनसे
दिलके जज्बात अनकहे होते
स्वप्न सच्चे जो हो गए होते
दर्द हमने न यूँ सहे होते
उनकी यादों ने कुछ उबारा है
वरना हम कब के मर गए होते
हमपे दीवानगी जो छा जाती
अच्छे अशआर कुछ कहे होते
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