प्रस्तुत है एक और पुरानी लिखी रचना.
बस यही मुश्किल है
बस यही मुश्किल है
तोड़ दूं कसमें तमाम, और वादे भूल जाऊं
बस यही मुश्किल है मेरी , कैसे मैं उसको भुलाऊं
मुझसे ज्यादा कीमती हैं अश्क मेरे यार के
है अभी नादान मेरा यार क्यूँ उसको रुलाऊं
कोई सब कुछ जानते भी जब बने अनजान सा
है यही मुश्किल कि उस्ससे क्या छिपाऊं क्या बताऊँ
कोई फब्ती ही नहीं तस्वीर दिल के फ्रेम में
है यही मुश्किल कि उसको छोड़ कर किसको सजाऊं
याद ही कोई नहीं है नाम एक उसके सिवा
है यही मुश्किल कि उसको छोड़ कर किसको बुलाऊं
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